Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 किन्तु राग की मन्दता से भी धर्मी और अधर्मी का माप नहीं होता। धर्मी और अधर्मी का माप तो अन्तरङ्ग-अभिप्राय से निकाला जाता है।
बाह्य त्यागी और मन्द रागी होने पर भी जो बन्धभाव को अपना स्वरूप मानता है, वह अधर्मी है और बाह्य में राजपाट का संयोग हो तथा राग विशेष दूर न हुआ हो, तथापि जिसे अन्तरङ्ग में बन्धभाव से भिन्न अपने स्वरूप की प्रतीति हो, वह धर्मी है। जो शरीर की क्रिया से, बाहर के त्याग से अथवा राग की मन्दता से आत्मा की महत्ता मानता है, वह शरीर से भिन्न, संयोग से और विकार से रहित आत्मस्वभाव की हत्या करता है, वह महापापी है। स्वभाव की हिंसा का पाप सबसे बड़ा पाप है।
बाहर का बहुत-सा त्याग और बहुत-सा शुभराग करके अज्ञानी लोग यह मान बैठते हैं कि इससे हम मुक्त हो जाएंगे, किन्तु हे भाई ! तुम आत्मा के धर्म का मार्ग ही अभी नहीं जान पाया, तब फिर मुक्ति तो कहाँ से मिलेगी? अन्तरङ्ग स्वभाव का ज्ञान हुए बिना आन्तरिक शान्ति नहीं मिल सकती और विकारभाव की आकुलता दूर नहीं हो सकती। सम्यग्ज्ञान ही मुक्ति का सरल मार्ग :
आत्मा के स्वभाव को समझने का मार्ग सीधा और सरल है। यदि यथार्थ मार्ग को जानकर उस पर धीरे-धीरे चलने लगे तो पंथ कटने लगे, परन्तु यदि मार्ग को जाने बिना ही आँखों पर पट्टी बाँधकर तेली के बैल की तरह चाहे जितना चलता रहे तो भी वह घूम-घामकर वहीं का वहीं बना रहेगा; इसी प्रकार स्वभाव का सरल मार्ग है, उसे जाने बिना, ज्ञाननेत्रों को बन्द करके चाहे
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