Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 1
अन्तरसन्धि जानकर, आत्मा की और बन्ध की अन्तरसन्धि को तोड़ने के लिए ही कहा है । आत्मा को बन्धनभाव से भिन्न करना न आये तो आत्मा को क्या लाभ है ? जिसने आत्मा और बन्ध के बीच के भेद को नहीं जाना, वह अज्ञान के कारण बन्धभावों को मोक्ष का कारण मानता है और बन्धभावों का आदर करके संसार को बढ़ाता रहता है; इसलिए आचार्यदेव कहते हैं कि हे भव्य जीव! एक प्रज्ञारूपी छैनी ही मोक्ष का साधन है। इस भगवती प्रज्ञा के अतिरिक्त अन्य कोई भी भाव, मोक्ष के साधन नहीं है ।
ध्यान करने पर पहले चैतन्य की ओर का विकल्प उठता है, वह निर्विकल्प का साधन है, यह बात भी यथार्थ नहीं है । विकल्प तो बन्धभाव है और निर्विकल्पता शुद्धभाव है। पहले अनिहतवृत्ति से (बिना भावना या बिना इच्छा के) विकल्प आते हैं, किन्तु प्रज्ञारूपी पैनी - छैनी उस विकल्प को मोक्षमार्ग के रूप में स्वीकार नहीं करती, किन्तु उसे बन्धमार्ग के रूप में जानकर छोड़ देती है। इस प्रकार विकल्प को छोड़कर ज्ञान रह जाता है I ऐसे विकल्पों को भी जान लेनेवाला ज्ञान ही मोक्ष का साधन है, परन्तु कोई विकल्प उस मोक्ष का साधन नहीं है। जो शुभविकल्पों को मोक्ष के साधन के रूप में स्वीकार करते हैं, उनके भगवती प्रज्ञा प्रगट नहीं हुई है, इसलिए वे बन्धभाव और मोक्षभाव को भिन्न-भिन्न नहीं पहचानते और अज्ञान के कारण, बन्धभावों को ही आत्मा के रूप में अङ्गीकार करके निरन्तर बद्ध होते रहते हैं। जबकि ज्ञानी को आत्मा और बन्धभाव का स्पष्ट भेदज्ञान होता है; इसलिए मोक्षमार्ग के बीच में आनेवाले बन्धभावों
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