Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
[31 उसी प्रकार यहाँ पर सम्यग्ज्ञानरूपी सुरंग है तथा आत्मा और बन्ध के बीच की सूक्ष्म सन्धि को लक्ष्य में लेकर सावधानी के साथ उसमें वह सुरंग लगानी है, ऐसा करने से आत्मा और बन्ध पृथक् हो जाते हैं। यहाँ सावधान होकर, प्रहार करने को कहा है अर्थात् चाहे जैसा राग हो, वह सब मेरे ज्ञान से भिन्न है; ज्ञानस्वभाव के द्वारा मैं राग का ज्ञाता ही हूँ, कर्ता नहीं; इस प्रकार सब ओर से भिन्नत्व जानकर अर्थात् मोह का अभाव करके ज्ञान का आत्मा में एकाग्र करना चाहिए। यहाँ पर प्रज्ञारूपी छैनी के प्रहार का अर्थ उसे हाथ में पकड़कर मारना, ऐसा नहीं है। प्रज्ञा और आत्मा कहीं भिन्न नहीं है। तीव्र पुरुषार्थ के द्वारा ज्ञान को आत्मा के स्वभाव में एकाग्र करने पर राग का लक्ष्य छूट जाता है,यही प्रज्ञारूपी छैनी का प्रहार है।
सूक्ष्म अन्तरसन्धि में प्रहार का अर्थ यह है कि शरीर इत्यादि परद्रव्य तो भिन्न ही हैं, कर्म इत्यादि भी भिन्न ही हैं, परन्तु पर्याय में जो राग-द्वेष होता है, वह स्थूलरूप से आत्मा के साथ एक जैसा दिखायी देता है; किन्तु स्थूलदृष्टि को छोड़कर सूक्ष्मरूप से देखने पर आत्मा के स्वभाव और राग में सूक्ष्म भेद है, वह ज्ञात होता है। स्वभावदृष्टि से ही राग और आत्मा भिन्न ज्ञात होते हैं; इसलिए सूक्ष्म अर्न्तदृष्टि के द्वारा ज्ञान और राग का भिन्नत्व जानकर, ज्ञान में एकाग्र होने से राग दूर हो जाता है अर्थात् मुक्ति हो जाती है। इस प्रकार सम्यग्ज्ञानरूपी प्रज्ञाछैनी ही मोक्ष का उपाय है। ज्ञान ही मोक्ष का साधन :
त्रिकाली ज्ञातास्वभाव और वर्तमान विकार के बीच सूक्ष्म
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