Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 यह दुर्लभ मनुष्यजन्म पाकर जिसे सच्चा जैनी होना है, उसे तो सत्समागम और शास्त्र के आधार से तत्त्वनिर्णय करना उचित है, किन्तु जो तत्त्वनिर्णय तो नहीं करता और पूजा, स्तोत्र, दर्शन, त्याग, वैराग्य, संयम, सन्तोष आदि सभी कार्य करता है, उसके ये सब कार्य असत्य; उनसे मोक्ष नहीं। इसलिए सत्समागम से आगम का सेवन, युक्ति का अवलम्बन, परम्परा से गुरुओं के उपदेश और स्वानुभव के द्वारा तत्त्व का निर्णय करना चाहिए। जिनवचन तो अपार है, उसका पूरा पार तो श्री गणधरदेव भी प्राप्त नहीं कर सके, इसलिए जो मोक्षमार्ग की प्रयोजनभूत रकम (बात, माल) है, उसे निर्णयपूर्वक अवश्य जानना योग्य है, कहा भी है कि -
अंतो णत्थि सुईणं कालो थोओवयं च दुम्मेहा। तंणवर सिक्खियव्यं जिं जरमरणक्खयं कुणहि॥
(-पाहुड़ दोहा-98) अर्थात् – श्रुतियों का अन्त नहीं है, काल थोड़ा है और हम निर्बुद्धि (अल्पबुद्धिवाले) हैं, इसलिए हे जीव! तुझे तो वह सीखना योग्य है कि जिससे तू जन्म-मरण का नाश कर सके। आत्महित के लिए सर्वप्रथम सर्वज्ञ का निर्णय :
हे जीवों! तुम्हें यदि अपना भला करना हो तो सर्व आत्महित का मूलकारण जो आप्त हैं, उसके सच्चे स्वरूप का निर्णय करके, ज्ञान में लाओ, क्योंकि सर्व जीवों को सुख, प्रिय है; सुख, भावकों के नाश से प्राप्त होता है; भावकर्मों का नाश, सम्यक्चारित्र से होता है; सम्यक्चारित्र, सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञानपूर्वक होता है; सम्यग्ज्ञान, आगम से होता है; आगम, किसी वीतराग पुरुष की वाणी से
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