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पूज्यश्री से ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण करने के बाद मोक्षार्थियों को जो अनुभव हुए हैं, उसका वर्णन हो पाए, ऐसा नहीं है। वह तो खुद अनुसरण करने पर ही पता चलेगा।
ब्रह्मचर्य के पालन का निश्चय होते ही वीर्य का ऊर्वीकरण शुरू हो जाता है।
विषय के लिए ही 'बिवेयर-बिवेयर' के बोर्ड लगे हुए हैं। साल भर के लिए ब्रह्मचर्यव्रत लेकर देखे तो अनुभव होगा। वह तो विधि करवानेवाले की शक्ति ही काम करती है! लेकिन वह ज्ञानी की आज्ञासहित होना चाहिए। प्रतिक्रमण से ब्रह्मचर्य में टेस्टेड हो जाता है।
ब्रह्मचर्य या अब्रह्मचर्य का जिसे अभिप्राय नहीं रहा, उसे ब्रह्मचर्यव्रत बरता, ऐसा कहा जाएगा। जिसे अब्रह्मचर्य याद तक नहीं आए, उसे ब्रह्मचर्य महाव्रत बरतता है, ऐसा कहा जाएगा।
टुकड़े-टुकड़े करके, यानी कि छ: महीने तक विषय बंद करके, फिर से बारह महीनों के लिए आज्ञापूर्वक बंद रखे, फिर थोड़े समय रुककर दो साल के लिए व्रत ले, ऐसा करते-करते चार-पाँच बार में साल-दो साल तक विषय बंद रहे तो उसका विषय हमेशा के लिए छूट जाएगा। क्योंकि जितना विषय से दूर रहा, उसका परिचय छूटा वैसे-वैसे विषय विस्मृत होता जाएगा। यानी प्रसंग-परिचय का छूटना ही आवश्यक है। लेकिन उसके लिए हिम्मत करके एक बार ऐसे दृढ़ निश्चय के साथ कूद जाना पड़ेगा, उसके बाद फिर 'ज्ञानीपुरुष' की वचनसिद्धि का अनुभव हो सकेगा, ऐसा है। फिर आत्मा का स्पष्टवेदन भी अनुभव किया जा सके, ऐसा है। एक विषय का त्याग करने से, सामने उसके बदले में कितनी बड़ी सिद्धि प्राप्त होती है ! वर्ना अनंत जन्मों में विषय की आराधना की, इसके बावजूद क्या परिणाम आया? विषय ने तो आत्मवीर्य का हनन किया है और देह का नूर भी निचोड़ लिया। सबसे बड़े आत्मशत्रु को साथ में लेकर सो गए, यह तो कैसी भयंकर भूल? इस भूल को मिटाने के लिए एक बार पतिपत्नी दोनों को 'ज्ञानीपुरुष' के पास प्रत्यक्ष में ब्रह्मचर्यव्रत, भले ही मियादी
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