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जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी "मेरी ओर से आज्ञा है। ये (पत्नी सज्जनकुमारीजी) अपनी वैराग्य भावना पूर्ण करें, दीक्षा लें और साध्वी बनकर ज्ञान-दर्शन-चारित्र में निरन्तर प्रगति करें।"
दीक्षा की अनुमति से सज्जनकुमारी को अत्यधिक हर्ष हुआ, आत्मिक सुखानुभूति हुई। उनकी भावना पूर्ण होने जा रही थी।
मुहूर्त निकलवाया गया दीक्षा का। पंडित ने पंचांग देखकर आषाढ़ शुक्ला २ का दिन शुभ बताया । दीक्षा-तिथि का निर्णय हो गया ।।
तिथि का निर्णय होते ही पूज्यवर्या श्री उपयोगश्रीजी म० सा० ने वैराग्यवती सज्जनकुमारी को साध प्रतिक्रमण प्रारम्भ करवा दिया, जिसे अपनी कुशाग्रबुद्धि से चरितनायिका ने ५-६ दिन में ही पूर्ण कर लिया और ३६० गाथाओं का पाक्षिक सूत्र केवल २ ही दिन में पूर्ण कर लिया।
__ अब आपके पितगृह तथा ससुराल में दीक्षा की तैयारियां होने लगीं । आपके साथ ही वैरागिन चौथीबाई कोचर की भी दीक्षा थी।
आखिर दीक्षा दिवस आ ही पहुँचा । सज्जनकुमारी के लिए आज सोने का सूरज उगा था। उनके हृदय में ऐसी खुशी थी जैसे अमूल्य मणि मिल गई है। उनकी रोम राजि विकसित थी । रग-रग से बैराग्य का दिव्य रस छलक रहा था।
प्रातःकालीन नित्य नैमित्तिक क्रियाएँ, यथा-सामायिक, प्रतिक्रमण, माला, पाठ-सप्तस्मरण, भक्तामर आदि करके तथा सांसारिक रीति-रिवाजों से निवृत हो, स्नान आदि से स्वच्छ बन, अपने निवास स्थान पर ही दीक्षोपलक्ष्य में स्वयं अपने द्वारा बनवाये हुए लघु देरासरवत् नूतन जिनमन्दिर में पूजा हेत पधारी । आज द्रव्य-पूजा का आखिरी दिन था । अतः बहुत ही भक्तिभाव और उल्लास के साथ स्नात्र पूजा सहित अष्ट प्रकारी पूजा की। उसके पश्चात् चैत्यवन्दनादि भाव-पूजा से भी निवृत्त हुई।
वरघोड़े की तैयारियाँ हो रही थीं। हाथी, घोड़े, बैंडबाजों व गीतों की मधुर ध्वनियों व मंडल आदि से वरघोड़े की शोभा में चार चाँद लग रहे थे । धर्मशाला से वरघोड़ा प्रारम्भ हुआ।
वैरागिन सज्जनकुमारी तथा चौथीबाई शिविकाओं में विराजमान थीं। दोनों ओर चमर ढलाए जा रहे थे । उदार हृदय से वर्षीदान देती हुई आगे बढ़ती जा रही थीं । हजारों लोग आकर्षित और चकित थे । जैनेतर लोग तो बहुत ही आश्चर्य कर रहे थे। सभी ओर से अहोधन्यं, अहोधन्यं की गूंज हर्षित हृदय से निकल रही थी। लोग मुक्तकण्ठ से जैनशासन की अनुमोदना करके पूण्य लाभ ले रहे थे।
जुलूस जौहरी बाजार से होकर नथमलजी (नथमलजी सज्जनकुमारी के दादा ससूर साहब का नाम था) के कटले में पहुँचा । हजारों लोग इकट्ठे हो गये; क्योंकि लोगों के लिए दीक्षा का प्रसंग नया ही था । सभी लोग देखने के लिए लालायित थे। कटले का विशाल प्रांगण जनमेदिनी से खचाखच भर गया । जयपुर के आस-पास के लोग भी आये थे। शामियाना खचाखच भर जाने से लोग वक्षों पर बैठे थे, इस आशा के कि सम्पूर्ण दृश्य दिखाई दे ।
पूर्व दिशा में लगभग दो फुट ऊँचा, लम्बा-चौड़ा, स्टेज बना हुआ था। उसके ठीक बीचोंबीच भगवान का ममोसरण था । ठीक उसके सामने पूज्य गुरुदेव मणिसागरजी म. सा० एक ऊँचे पट्ट पर विराजित थे। उसी ओर एक पड़े पट्टे पर प्र० श्री ज्ञानश्रीजी म. सा., श्री उपयोगश्रीजी म. सा. आदि अपने साध्वीमंडल के साथ विराज रही थीं । पूज्य गुरुदेव ने भ० महावीर की जयकार से जन कोलाहल
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