Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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३४] प्राकृतपैंगलम्
[१.६७ इअL इति, जंपिअ Vजंप+इअ (निष्ठा) (जल्पितं).
पिंगलेण णाएण-'एण' प्राकृत-अप० में करण ए० व० का चिह्न है, इसका विकास संस्कृत 'एन' (देवेन, रामेण) से हुआ है दे० पिशेल ३६३ । जहा,
परिहर माणिणि माणं पक्खहि कुसुमाइँ णीवस्स ।
तुम्ह कए खरहिअओ गेण्हइ गुडिआधणुं अ किर कामो ॥६७॥ [विग्गाहा] ६७. विगाथा का उदाहरण
कोई नायक या सखी ईामानकषायिता नायिका से कह रही है। 'हे मानिनि मान को छोडो, (कामोद्दीपन करने वाले) कदम्ब के फूलों को तो देखो । (ये फूल क्या हैं) मानों कठोरहृदय कामदेव ने तुम्हारे लिए गुटिकाधनुष (गुलेल) को धारण कर लिया है।
पक्खहि । प्रेक्षस्व, Vपेक्ख+हि (आज्ञा० म० पु० ए० ध० तिङ् विभक्ति) । कुसुमाई-नपुंसक बहुवचन । णीवस्स, 'स्स' संबंध ए० व० ।
तुम्ह 2 तव । (संबंध० ए० व० रूप । दे० पिशेल ६ ४२०-४२१ । पृ. २९७ । प्राकृतपैंगलं में इसके 'तुह' (१.१५७) तथा तुज्झे (२.४) ('तुज्झ' को 'जुज्झे की तुक पर' तुज्झे बना दिया है) रूप भी मिलते हैं । प्राकृत में इसके कई वैकल्पिक रूप मिलते हैं, मुख्य रूप ये हैं:- तुह, तुहँ, तुज्झ, तुझं, तुम्हँ, तुम्म, तु, ते, दे (महा०), तब, ते तुब्भं, तुहं, तुमं, (अर्धमागधी), तुह, तुम्ह, तुज्झ, तव, तुझं (जैनमहा०), तुह (शौर०), तउ, तुज्झु (हेम०), तुज्झह (विक्रमोर्वशीय), तुह (हेम०) (अपभ्रंश)।
कए < कृते. इसी से 'हिन्दी' में सम्प्रदान कारक के परसर्ग-युगल 'के लिए' के प्रथम अंश 'के' का विकास हुआ है, 'कृते > कए > के. ('लिए' वाले अंश का संबंध सं० 'लग्ने' (प्रा० लग्गे) से जोड़ा जाता है) इसी सं० 'कृते' के प्रातिपदिक रूप 'कृत' से संबंधबोधक हिंदो पदसर्ग 'का' का विकास हुआ है, कृत > कअ < का.
खरहिअओ-हृदयक: < हिअओ. गेण्हइ < गृह्णाति. (Vगेण्ह+इ. वर्तमान. प्र० पु० ए० व०)
गुडिआधj < गुटिकाधनुः, म०भा०आ० में आकर संस्कृत हलंत शब्द प्रायः अजंत हो गये हैं। सं० धनुष यहाँ 'धणु' होकर उकारांत शब्दों की तरह सुप् विभक्ति का प्रयोग करता है।
किर < किल. (उत्प्रेक्षावाचक शब्द) 'दे० वेलि किसन रुकमणी की' भूमिका । अह उग्गाहा,
पुव्वद्धे उत्तद्धे मत्ता तीसंति सुहअ संभणिआ ।
सो उग्गाहो वुत्तो पिंगल कइ दिट्ठ सट्ठि मत्तंगो ॥६८॥ (उग्गाहा) ६८. उद्गाथा छंदः. हे सुभग, जिस छंद में पूर्वार्ध तथा उत्तरार्ध दोनों में तीस मात्रा कही गई है, वह उद्गाथा छंद है; पिंगल कवि ने इसे देखा है तथा वह ६० मात्रा का छंद है। ६७. पेक्खहि-B. पेक्खहिं, C. पेच्छह, D. पेष्षहि । कुसुमाई-A. B.C. कुसुमाई, D. कुसुमाइ । णीवस्स-B. णिबस्स, C. णावस्स । तुम्ह-A. तुज्झ, 0. तुंभ । 'खरहिअओ-C. कए ख्खरहिअओ । गण्हइ-C. गेलइ, D. गिलइ । गुडिआ-B गुटिका', C. गुणिआघणू । धणुं अ-0. धणूइ । किर-D. किल । ६७-C.७० । ६८. तीसंति-A. तिसत्ति, C. तिसन्ति, D.O. तीसत्ति । सुहअ-D. सुभअ । सो-A. सौ, 0. सोइ । उग्गाहो वुत्तो-C. उग्गाहा वृत्तो, D. उग्गाहो वुत्तं, 0. उगाहो । दिठ्ठ-C. दिछ । सट्ठिC. सठ्ठि । मत्तंगो-A. मत्तांगो, ०. मत्तंको ।
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