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इस पर गुजराती में टब्बा है। यह अवचूरि और गुजराती अनुवाद सहित श्रीबुद्धिवृद्धि कर्पूर-ग्रन्थमाला से वि.सं. 1994 में पयन्नासंग्रह भाग 1 में प्रकाशित है। 41 आचारांगसूत्र (आयारो) ____ अर्धमागधी आगम ग्रन्थों में आचारांग का प्रथम स्थान है। आचारांग नियुक्ति में आचारांग को अंगों का सार कहा गया है - अंगाणं किं सारो! आयारो। (गा.16) नियुक्तिकार भद्रबाहु ने लिखा है कृितीर्थकर भगवान् सर्वप्रथम आचारांग का और उसके पश्चात् शेष अंगों का प्रवर्तन करते हैं। प्रस्तुत आगम दो श्रुतस्कन्धों में विभक्त है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में 9 अध्ययन हैं, लेकिन महापरिज्ञा नामक सातवें अध्ययन के लुप्त हो जाने के कारण वर्तमान में इसमें 8 अध्ययन तथा 44 उद्देशक हैं। द्वितीय श्रुतस्कन्ध चूलिका के नाम से प्रसिद्ध है, जो चार चूलिका व 16 अध्ययनों में विभक्त है। प्रथम श्रुतस्कन्ध के अध्ययनों में जीव-हिंसा का निषेध, कर्मबंधन से मुक्ति, परीषहों पर विजय, रत्नत्रय की महत्ता तथा तप व संयम द्वारा शुद्धात्मरूप की प्राप्ति का विवेचन किया गया है। आचारांग के नवें अध्ययन 'उपधान' में भगवान् महावीर की तपस्या एवं साधना का विस्तृत वर्णन हुआ है। आचारांग का महत्त्वपूर्ण उद्बोधन अहिंसा एवं असंगता है अर्थात् समस्त प्राणी जगत के प्रति समत्वभाव की अनुभूति एवं राग-द्वेष आदि आंतरिक कषायों पर विजय प्राप्ति ही विशुद्ध आचार है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध में समणों के आचार का विवेचन है। चार चूलिकाओं में विभक्त इस श्रुतस्कन्ध में श्रमणों की आहारचर्या, शय्या, चलने की प्रक्रिया, वस्त्र व पात्रग्रहण, ठहरने के स्थान आदि पर प्रकाश डाला गया है। पाँचवीं चूलिका विस्तृत होने के कारण निशीथसूत्र के नाम से अलग कर दी गई है। आचारांग पर भद्रबाहु की नियुक्ति जिनदासगणि की चूर्णि एवं शीलांकाचार्य की (876 ई.) की वृत्ति भी है। आचारांग के अध्ययन से ही
श्रमणधर्म का परिज्ञान होता है, अतः आचार-धर को प्रथम गणिस्थान कहा गया है। 42. आरामशोभाकथा
आरामशोभाकथा लौकिक कथा साहित्य की रोचक कथा है पर यह सम्यक्त्व
28 0 प्राकृत रत्नाकर