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38. आनन्दसुन्दरी
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आनन्दसुन्दरी सट्टक के रचयिता सरस्वती के अवतार महाराष्ट्रचूडामणि कवि घनश्याम हैं। कवि घनश्याम सर्वभाषा कवि माने जाते हैं। संस्कृत, प्राकृत एवं देशी सभी भाषाओं में इनकी रचनाएँ प्राप्य हैं। इनका समय लगभग 1700-1750 ई. है। आनंदसुंदरी प्राकृत का एक मौलिक सट्टक है, जिसकी कथावस्तु का गठन कर्पूरमंजरी के आधार पर नहीं हुआ है, इस सट्टक की कथावस्तु में राजा शिखण्डचन्द्र और अंगराज की कन्या आनंदसुंदरी के प्रेम, विवाह एवं पुत्र प्राप्ति की घटना का वर्णन है। इस सट्टक की कथावस्तु में मौलिकता का पुट है। दो गर्भ नाटकों का विनियोजन कर कवि ने कथावस्तु की गतिशीलता को बनाये रखा है। गर्भाक की कल्पना इस सट्टक की अपनी मौलिक विशेषता है । पाठकों की रोचकता को बनाये रखने के लिए कई दृश्यों में कवि ने हास्य एवं व्यंग का समावेश भी किया है । भाषा व रुचि सम्मत प्राकृत है, कहीं कहीं संस्कृत का भी प्रयोग है। मराठी भाषा के बहुत से शब्द इसमें प्रयुक्त हुए हैं। इसके संवाद सारगर्भित हैं। रस, भाव, छंद, अलंकार आदि की विनियोजना की दृष्टि से यह उत्तम सट्टक है।
39. आम्र कवि
आख्यानमणिकोश के रचयिता आम्र कवि हैं । ग्रंथ के प्रारम्भ और अन्त ग्रंथकार ने अपने लिए अम्म शब्द के अतिरिक्त कोई विशेष परिचायक सामग्री नहीं दी है। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि वि. सं. 1190 में रचित 'आख्यानकमणिकोश' वृत्तिकार आम्रदेव और इस चरित के रचयिता एक ही हैं पर उक्त वृत्ति में अम्म और आम्रदेव के अभिन्न होने का कोई आधार नहीं मिलता है । इस ग्रंथ की अनुमानतः 16वीं शताब्दी की हस्तलिखित प्रति खम्भात के विजयनेमिसूरीश्वर - शास्त्रसंग्रह में उपलब्ध है।
40. आराधना प्रकरण (पज्जंताराहणा )
इसे आराधनाप्रकरण या आराधनासूत्र भी कहते हैं। इसमें 69 गाथायें हैं । इसके कर्ता सोमसूरि हैं। इसमें अन्तिम आराधना का स्वरूप समझाया गया है।
प्राकृत रत्नाकर 0 27