Book Title: Paumchariyam Part 04
Author(s): Parshvaratnavijay
Publisher: Omkarsuri Aradhana Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ मणोरमालंभपव्वं - ९० / १२-३० रयणरहं भणइ तओ, हसिऊणं नारओ अइमहन्तं । भडवोक्कियं कहिं तं, तुज्झ गयं जं पुरा भणियं ॥ २५ ॥ एवं रयणरहेणं पडिभणिओ नारओ तुमे कोवं । नीएण अम्ह जाया, उत्तमपु रिसेसु सह पीई ॥२६॥ अह ते रयणरहेणं हलहर - नारायणा पुरिं निययं । ऊसियधयापडायं, पवेसिया कणगपायारं ॥ २७॥ दिन्ना कणगरहेणं, सिरिदामा हलहरस्स वरकन्ना । लच्छीहरस्स वि तओ, मणोरमा सव्वगुणपुण्णा ॥२८॥ वत्तं पाणिग्गहणं, कमेण दोण्हं पि पवररिद्धीए । विज्जाहरीहि समयं रयणपुरे राम केसीणं ॥ २९ ॥ एवं पयण्डा वि अरी पणामं, वच्चन्ति पुण्णोदयदेसकाले । रस्स रिद्धी व हु होइ तुङ्गा, तम्हा, खु धम्मं विमलं करेह ॥ ३० ॥ ॥ इइ पउमचरिए मणोरमालम्भविहाणं नाम नउड्यं पव्वं समत्तं ॥ एवं रत्नरथेन प्रतिभणितो नारदस्त्वया कोपम् । नीतेनास्माकं जातोत्तमपुरुषैः सह प्रीतिः ||२६|| अथ तौ रत्नरथेन हलधर - नारायणौ पुरीं निजाम् । उच्छ्रितध्वजापताकां प्रवेशितौ कनकप्राकाराम् ॥२७॥ दत्ता कनकरथेन श्रीदामा हलधरस्य वरकन्या । लक्ष्मीधरस्यापि ततो मनोरमा सर्वगुणपूर्णा ॥२८॥ वृत्तं पाणिग्रहणं क्रमेण द्वयोरपि प्रवरर्द्धया । विद्याधरिभिः समकं रत्नपुरे रामकेश्योः ॥ २९ ॥ एवं प्रचण्डा अप्यरयः प्रणामं गच्छन्ति पुण्योदयदेशकाले । नरस्यद्धिरपि खलु भवति तुड्गा तस्मात्खलु धर्मं विमलं कुरुत ॥३०॥ ॥ इति पद्मचरिते मनोरमालाभविधानं नाम नवतितमं पर्वं समाप्तम् ॥ १. ० पुरिसेण स० मु० । Jain Education International For Personal & Private Use Only ५७७ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166