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निर्मन्ध-प्रवचन
निर्जरा एकदेश कर्मों का क्षय होना । मोम सम्पूर्ण पाप पुण्यों से छूट जाना । एकान्त सुख के मागी होना मोक्ष है। मूल:-धम्मो अहगो मागासं सालोपोगा मानो।
एस लोगु त्ति पण्णत्तो जिणेहि बरदसिहि ।।१३।। छायाः-धर्मोऽधर्म आकाश काल: पुद्गलजन्तवः
एषो लोक इति प्रज्ञप्तो जिनवरदर्शिभिः ॥१३।। आपयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (धम्मो) धर्मास्तिकाय (अहम्मो) अधर्मास्तिवाय (आगासं) आकाशास्तिकाय (कालो) समय (पोग्गलजंतवो) पुद्गल और जीव (एस) ये छः ही द्रव्य बाला (लोगु ति) लोक है । ऐसा (वरदंसिहि) केवल ज्ञानी (जिणेहिं) जिनेश्वरों ने (पणतो) कहा है। __भावार्थ:-हे गौतम ! धर्मास्तिकाय जो जीव और जड़ पदार्थों को गमन करने में सहायक हो । अधर्मास्तिकाय जीव और अजीव पदार्थों की गति को मवरोध करने में कारणभूत एक द्रव्य है। और बाकाश, समय, जड़ और चेतन इन छ: द्रव्यों को ज्ञानियों ने लोक फहकर पुकारा है। मूल:-धम्मो अहम्मो आगास; दब्बं इक्किक्कमाहियं ।
अणंताणि य दब्धाणि य; कालो पुग्गलजंतवो ॥१४॥ छाया:-धर्मोऽधर्म आकाशं द्रव्यं एककमाख्यातम् ।
अनन्तानि च द्रव्याणि च काल: पुद्गलजन्तवः ।।१४।। अम्बया:-हे इन्द्रभूति ! (धम्मो) धर्मास्तिकाय (अहम्मो) अधर्मास्ति. काय (आगास) आकायाास्ति काय (दक्वं) इन द्रव्यों को (इविक्रवक) एक-एक दव्य (आहिय) कहा है (य) और (कालो) समम (पुग्गलजंतयो) पुद्गल एवं जीव इन द्रव्यों को (अणताणि) अनंत कहा है।
भावार्थ:-हे शिष्य ! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय ये तीनों एक-एक द्रश्य हैं। जिस प्रकार आकाश के टुकड़े नहीं होते, वह एक अखण्ड द्रव्य है, ऐसे ही धर्मास्तिकाय तथा अधर्मास्तिकाय भी एक-एक ही अखण्ड द्रव्य हैं और पुद्गल अर्थात्-वर्ण, गंध, रस, स्पर्श वाला एक मूर्त द्रव्य तथा जीव और (अतीत व अनागत की अपेक्षा) समय, ये तीनों अनंत द्रव्य माने गये हैं ।
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