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निर्ग्रन्थ-प्रवचन
भावार्थ :- हे गौतम! जब यह आत्मा दो इंद्रियवाली योनियों में आकर जम्म धारण करता है तो काल गणना की जहाँ तक संख्या बताई जाती है वहाँ तक अर्थात् संख्यात काल तक उसी योनि में जन्ममरण को धारण करना रहता है | अतः हे गौतम! क्षणमात्र का भी प्रमाद न कर । मूलः -- वैइदियकाय मनाओ,
उक्कोसं जीवी उ सबसे । कालं संखिज्जसंणिअं,
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समयं गोयम ! मा प्रमायए ।। ११ ।।
चउरिदिय कायम इगओ,
उक्कोसं जीवो उ सबसे ।
कालं संखिज्जसंणिअं,
समयं गोयम ! मा पमायए ||१२||
छाया:- त्रीन्द्रियकायमतिगतः उत्कर्षतो जीवस्तु संवसेत् । कालं संख्येयसंज्ञितं समयं गौतम ! मा प्रमादीः ||११||
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चतुरिन्द्रियकायमतिगतः उत्कर्षतो जीवस्तु संवसेत् ।
कालं संख्येयसंज्ञितं समयं गोतम ! मा प्रमादीः || १२ || अन्वयार्थः -- ( गोयम !) हे गौतम ! (ते इंदियकायमओ) तीन इन्द्रियवाली योनि को प्राप्त हुआ (जीवो) जीव (उक्कोसं ) उत्कृष्ट ( संखिज्जसं ण्णिां) काल गणना की जहाँ तक संख्या बताई जाती है वहाँ तक अर्थात् संख्यात ( काल ) काल तक (सबसे) रहता है। इसी तरह ( चउरिदियकायमइगओ ) चतुरिद्रिय वाली योनि को प्राप्त हुए जोव के लिए भी जानना चाहिए अतः ( समयं ) समय मात्र का भी (मा पमायए) प्रमाद मत कर
भावार्थ:- हे गौतम! जब यह आत्मा तीन इन्द्रिय तथा चार इन्द्रियवाली योनि में जाता है तो अधिक से अधिक संख्यात काल तक उन्हीं योनियों में जन्म-मरण को धारण करना रहता है। अतः हे गौतम! धर्म की वृद्धि करने में एक पल भर का भी कभी प्रमाद न कर ।
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