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निग्रंन्य-प्रवचन ।
सयंभुणा कडे लोए, इति वुत्त महेसिणा । मारेण संथुया माया, तेण लोए असासए ।।१६।। माणा समणा एगे, आह अंडकडे जगे ।
असो तत्तमकासो य, अयाणंता मुसं बदे ।।२०।। छाया:- इदमन्यत्त अज्ञानं, इहैकौतदाख्यातम् ।
देवाप्तोऽयं लोकः, ब्रह्मोप्त इत्यपरे ।।१७।। ईश्वरेण कृतोलोकः प्रधानादिना तथाऽपरे । जीवाजीबसमायुक्तः, सुखदुःखसमन्वितः ॥१८|| स्वयम्भुवा कृतो लोक: इत्युक्तं महर्षिणा । मारेण संस्तुता माया, तेन लोकोऽशाश्वत: ॥१६॥ मानाः श्रमणा एके, आहुर प्रकृतं जगत् ।
असो तस्वमकार्षीत्, अजानन्तः मृषा वदन्ति ॥२०॥ अम्बयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (इह) इस संसार में (मेगेसि) कई एक (अन्न) अन्य (अनाण) अज्ञानी (इण) इस प्रकार (आहियं) कहते है कि (अयं) इस (जीवाजीव समाउत्ते) जीव और अजीव पदार्थ से युक्त (सुहदुक्खसमनिए) सुख और दुखों से युक्त ऐसा (लोए) लोक (देवउत्ते) देवताओं ने बनाया है (मावरे) और दूसरे यों कहते हैं कि (बंमउत्तति) ब्रह्मा ने बनाया है। कोई कहते हैं कि (लोए) लोक (ईसरेण) ईश्वर ने (कडे) बनाया है (तहावरे) तथा दूसरे यों कहते हैं कि (पहाणाइ) प्रकृति ने बनाया है तथा नियति ने बनाया है। कोई घोसते हैं कि (लोए) लोक (सयंमुणा) विष्णु ने (कडे) बनाया है। फिर मार "मृत्यु" बनाई । (भारण) मृत्यु से (माया) माया (संयुया) पैदा की (तग) इसी से (लोए) लोक (असासए) अशाश्वत है। (इति) ऐसा (महेसिणा) माहपियों ने (वृत्त) कहा है । और (एगे) कई एक (माहणा) ब्राह्मण (समणा) संन्यासी (जगे) जगत् (अंडकडे) अण्डे से उत्पन्न हुआ ऐसा (आर) कहते हैं । इस प्रकार (असो) ब्रह्मा ने (तत्तमकासी य) सत्त्व बनाया ऐसा कहने वाले । (अयाणता) तत्त्व को नहीं जानते हुए (मुस) झूठ (वदे) कहते हैं।