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निर्ग्रन्थ-प्रवचन
धर्म-बोध प्राप्त न किया, तो फिर धर्म-बोध प्राप्त होना महान् कठिन है । गधा | हुआ समय तुम्हारे लिए वापस लौट कर आने का नहीं, और न मानव जीवन ही सुलमता से मिल सकता है ।
मूलः-डहरा वुड्ढाय पासह,
___ गब्भत्था वि चयंति माणवा । सेणे जह बट्टयं हरे,
एवमाउखयम्मि तुट्टई ॥२॥ छाया:-दिशामलाः पश्यत, या अणि मनम्ति मानवाः!
श्येनो यथा वर्तकं हरेत्, एक्मायुक्षये त्रुट्यति ।।२।। अन्वयापं:-हे पुत्रो ! (पासह) देखो (डहरा) बालक तथा (बुढा) वृद्ध (चयति) शरीर त्याग देते हैं। और (गल्भत्या) गर्भस्थ (माणवा वि) मनुष्य भी शरीर त्याग देते हैं (जह) जैसे (सेणे) बाज पक्षी (वयं) बटेंर को (हरे) हरण कर ले जाता है (एवं) इसी तरह (आउल्लयम्मि) उम्र के बीत जाने पर (तुट्टई) मानव-जीवन टूट जाता है ।
भावार्थ:-हे पुत्रो ! देखो कितनेक तो बालवय में ही तथा कितनेका वृद्धा. वस्था में अपने मानव शरीर को छोड़कर यहाँ से चल बसते है । और कितनेक गर्मावास में ही मरण को प्राप्त हो जाते हैं। जैसे, दाज पक्षी अचानक बटेर को आ दबोचता है, वैसे ही न मालूम किस समय आयु के क्षय हो जाने पर मृत्यु प्राणों को हरण कर लेगी । अर्थात् आयु के क्षय होने पर मानव-जीवन की श्रृंखला दूट जाती है। भूल:--मायाहिं पियाहिं लुप्पइ,
नो सुलहा सुगई य पेच्चओ । एथाइ भयाई पेयिा ,
आरंभा विरमेज्ज सुव्वए ॥३॥