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मनो-निग्रह
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और ममत्व द्वारा आते हुए पाप को रोक कर, जो करोड़ों भवों में पहले संचित किये हुए कर्म हैं उनको तपस्या द्वारा क्षय कर लेता है। तात्पर्य यह है कि बागामी फर्मों का संवर और पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा हो कर्म क्षय-मोक्ष-का कारण है। मूलः--सो तवो दुविहो वुत्तो, बाहिरभितरो तहा ।
बाहिरो छविहो वुत्तो, एवमभितरो तबो ॥११|| छायाः-तत्तयो द्विविधमुक्त, बाह्यमाभ्यन्तरं तथा।
बाह्य षड्विधमुक्त, एबमाभ्यन्तरं तपः ॥११॥ ___ अन्वयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (सो) वह (तो) तप (दुविहो) दो प्रकार का (बुसो) कहा गया है । (बाहिरमित तहा) वा तया अभ्यस्तर माहिरी) बाप तप (छविहो) छ: प्रकार का (बुसो) कहा है। (एवं) इसी प्रकार (अमितरो) आभ्यन्तर (तवो) तप भी है।
भावार्थ--हे आर्य ! जिस सम से, पूर्व संचित कर्म नष्ट किए जाते हैं, वह तप दो प्रकार का है । एक बाल और दूसरा माम्यस्तर । बाह्म के छः प्रकार है । इसी तरह आभ्यन्तर के मी छ: प्रकार हैं। मूल:-.अणसणसूणोयरिया,
भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ। कायकिलेसी सलीयणा,
य बज्झो तवो होई ॥२२॥ छाया:-अनशनमूनोदरिका, भिक्षाचर्या च रसपरित्यागः ।
कायक्लेशः संलीनता च, बाह्य तपो भवति ॥१२॥ अन्वपार्ष:-हे हदभूति ! बाप तप के छ: भेद यों हैं—(अणसणमूणोयरिया) अनशन, जनोपरिका (य) और (भिक्खापरिया) भिक्षाचर्या (रसपरिम्चाओ) रसपरित्याग (कायकिलसो) काप क्लेश (य) और (संलीगया)