Book Title: Nirgrantha Pravachan
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

View full book text
Previous | Next

Page 263
________________ २३८ निग्रंन्य-प्रवचन सावयार्थ:-हे जम्बू ! (अणुत्तरनाणी) प्रधान ज्ञान (अणुसरदसी) प्रधान । दर्शन अर्थात् (अणुत्तरनाणदसणधरे) प्रधान ज्ञान और दर्शन उसके धारक, और (विआहिए) सत्योपदेशक (से) उन निग्रंथ (णायपुत्ते) सिद्धार्थ के पुत्र (बसालिए) त्रिशला के अंगज (अरहा) अरिहंत (भयवं) भगवान् ने (एव) इस प्रकार (उदाह) कहा है । (ति बेमि) इस प्रकार सुध में स्वामी ने जम्बू स्वामी प्रति कहा है। भावार्थः - - है जम्बू ! प्रधान ज्ञान और प्रधान दर्शन के धारी, सत्योपदेश करने वाले, प्रसिद्ध क्षत्रिय कुल के सिद्धार्थ राजा के पुत्र और त्रिशाला रानी के अंगज, निर्गय, अरिहंत भगवान महावीर ने इस प्रकार कहा है, ऐसा सुधर्म स्वामी ने जम्बू स्वामी के प्रति निन्म के प्रवचन को समझाया है । ।। इति चासोः ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277