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फर्म निरूपण
मूल:--उदहीसरिसनामाणं, तीसई कोडिकोडीओ।
उक्कोसिया ठिई होइ, अंतोमुहत्तं जण्णिया ।।१६।। आवरणिज्जाण दुण्हं पि, बेयणिज्जे तहेब य ।
अंतराए य कम्माम, ०३ एसा बिमाहिमा ।।१७।। छाया:--उदधिसङ नाम्नां त्रिशत्कोटाकोटयः ।
उत्कृष्टा स्थितिर्भवति, अन्तर्मुहुर्ता जघन्यका ॥१६॥ आवरयोद्वयोरपि वेदनीये तथैव च ।
अन्तराये च कर्मणि स्थितिरेषा व्याख्याता ।।१७।। अन्वयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (दुहं पि) दोनों ही (आवणिजाण) ज्ञानाबरणीम व दर्शनावरणीय कर्म की (तीसई) तीस (कोडिकोडोओ) कोटाकोटि (उदहीसरिसनामाण) समुद्र के समान है नाम जिसका ऐसा सागरोपम (उकोसिमा) ज्यादा से ज्यादा (ठिई) स्थिति (हाई) है (तहेव) वैसे ही (वेयणिज्जे) वेदनीय (य) और (अन्तराए) अन्तराय (कम्मम्मि) कर्म के विषय में भी (एसा) इतनी ही उत्कृष्ट स्थिति है और (जष्णिया) कम से कम चारों कर्मों की (अन्तोमुहृत्त) अन्तर्मुहूर्त (लिंई) स्थिति (विाहिया) कही है।
भावार्थ:--हे गौतम ! ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय ये चारों कर्म अधिक से अधिक रहें तो तीस क्रोहाकोडी (तीस फोड़ को तीस क्रोड़ से गुणा करने पर जो गुणनफस आने उतने) सागरोपम की इनकी स्थिति मानी गई है । और कम से कम रहें तो अन्तर्मुहत्तं की इनकी स्थिति होती है। मूलः-उदहीसरिसनामाणं, सत्तरि कोडिकोडीओ ।
मोहणिज्जस्स उक्कोसा, अन्तोमुहुत्त जहणिया ॥१८॥ तेत्तीसं सागरोवम, उक्कोसेण विआहिया । ठिई उ आउकम्मस्स, अन्तोमुहुत्त जहष्णिया ॥१६॥ उदहीसरिसनामाणं, बीसई कोडिकोडीओ। नामगोत्ताण उक्कोसा, अट्ठ मुहत्ता जहणिया ।।२०।।