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निर्मन्य-प्रवचन
मर्यादा पूर्वक रूपी पदार्थों को प्रत्यक्ष रूप से जानना यह अवधिज्ञान है। (४) दूसरों के हृदय में स्थित मावों को प्रत्यक्ष रूप से जान लेना मनःपर्यवज्ञान है। और (५) त्रिलोक और त्रिकालवर्ती समस्त पदार्थों को युगपत् हस्तरेखावत जान लेना मदतान करना है मल:--अह सव्वदवपरिणामभावविष्णत्तिकारणमणतं ।
सासयमप्पडिबाई एगविहं केवलं नाणं ।।२।। छाया:- अथ सर्वद्रव्यपरिणाम भावविज्ञप्ति कारणमनन्तम् ।
शाश्वतमप्रतिपाति च, एकविध केवलं ज्ञानम् ।।२।। ___ अम्बयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (केवलं) कैवल्य (नाणं) ज्ञान (एगविह) एक प्रकार का है। (सबदवपरिणाममाववित्तिकारणं) सर्व द्रव्यों की उत्पत्ति, ध्रौव्य, नाश और उनके गुणों का विज्ञान कराने में कारणभूत है। इसी प्रकार (अणतं) झेम पदार्थों की अपेक्षा से अनंत है, एवं (सासयं) शाश्वत और (अप्पहिवाई) अप्रतिपाती है।
भावार्थ:-हे गौतम ! कंबल्य ज्ञान का एक ही भेद है । और वह सर्व वख्य मात्र के उत्पत्ति, विनाश, ध्रुवता और उनके गुणों एवं पारस्परिक पदार्थों को भिन्नता का विशान कराने में कारणभूत है। इसी प्रकार ज्ञेय पदार्थ अनंत होने से इरो अनंत मी कहते हैं और यह शाश्वत भी है। भावलज्ञान उत्पन्न होने के पश्चात् पुनः नष्ट नहीं होता है इसलिए यह अप्रतिपाती भी है। मूल:--एयं पंचविहं गाणं, दवाण य गुणाण य ।
पज्जवाणं च सब्वेसि, नाणं नाणीहि देसियं ।।३।। छायाः--एतत् पञ्चविघं ज्ञानम्, द्रव्याणाम् च गुणाणांच ।
पर्यवाणां च सर्वेषां, ज्ञानं ज्ञानिभिर्देशितम् ॥३॥ अन्वयार्ष:-हे इन्द्रभूति ! (एयं) यह (पंचविह) पाच प्रकार का (नाणं) सान (सवेसि) सर्व (दव्वाणं) द्रव्य (म) और (गुणाण) गुण (य) और (पजवाणं) पर्मायों को (नाणं) जानने वाला है, ऐसा (नाणीहि) तीर्थंकरों द्वारा (देसिय) कहा गया है।