________________
निम्रन्थ-प्रवचन
अन्वयार्थ :--हे इन्द्रभूति ! (कामा) कामभोग (सल्लं) कोटे के समान हैं, (कामा) काममोग (विसं) विष के समान हैं (कामा)कामभोग (आसीविसोवमा) दृष्टि-विष सर्प के समान हैं, (कामे) कामनाओं की (परमाणा) इच्छा करने पर (अकामा) बिना ही विषय-वासना सेवन किये यह जीव (दुग्गइं) दुर्गति को (जति) प्राप्त होता है।
भावार्थ:-हे आर्य ! यह काममोग चुमने वाले तीक्ष्ण कांटे के समान हैं, विषय-वासना का सेवन करना तो बहुत ही दूर रहा, पर उसकी इच्छा मात्र करने हो में मनुष्यों की दुर्गति होती है। मूल:-खणमेत्तसुक्खा बहुकाल दुक्खा
पगामदुक्खा अनिगामसुक्खा । संसारमोन्स निलभामा
खाणी अणत्याण उ कामभोगा ॥१५॥ छायाः-क्षणमात्रसौख्या बहुकालदु:खाः,
प्रकामदुःस्त्रा अनिकामसौख्या: । संसारमोक्षस्य विपक्षभूताः,
खानिरनर्थानां तु कामभोगाः ।।११।। अन्वयार्थः-हे इस्द्रभूति ! (काम भोगा) ये कामभोग (खणमेत्तसुक्खा) क्षण भर सुख देने वाले हैं, पर (बहुकालदुक्खा) बहुत काल तक के लिए दुह रूप हो जाते हैं। अतः ये विषयमोग (पगामदुबला) अत्यन्त दुःख देने वाले और (अनिगामसुक्खा) अत्यल्प सुख के दाता हैं । (संसारमोक्खस्स) मंसार से मुक्त होने वालों को ये (विपक्खमया) विपक्षभूत अर्थात यात्रु के समान है। और (अणत्थाण) अनर्थों की (खाणी उ) खदान के समान हैं।
भावार्थ:-हे गौतम ! ये काममोग केवल सेवन करते समय ही क्षणिक सुखों के देने वाले हैं और भविष्य में वे बहुत अर्से तक दुखदायी होते हैं। इसलिए हे गौतम ! ये भोग अत्यन्त दुख के कारण है ; सुख जो इनके द्वारा प्राप्त होता है वह तो अत्यल्प ही होता है । फिर ये मोग संसार से मुक्त होने वाले के लिए पूरे-पूरे शत्रु के समान होते हैं । और सम्पूर्ण अनर्थों को पैदा करने वाले हैं।