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निर्ग्रन्थ-प्रवचन
(दसवां अध्याय) प्रमाद-परिहार
॥ श्रीभगवानुवाच॥ मूलः–दुमपत्तए पंडुरए जहा,
निवडइ राइगणाण अच्चए । एवं मणुआण जीवि,
समयं गोयम ! मा पमायए ।।१।। छाया:-द्रुमपत्रकं पाण्डुरकं यथा, निपतति रात्रिगणाणामत्यये ।
एवं मनुजानां जीवितं, समयं गौतम ! मा प्रमादी: ॥१॥ सम्वयार्थ:-(गोयम !) हे गौतम ! (जहा) जैसे (राइगणाणअच्चए) रात दिन के समूह बीत जाने पर (पंडुरए) पक जाने से (दुमपत्तए) वृक्ष का पत्ता {निवडइ) गिर जाता है (एवं) ऐसे ही (मणुआणं) मनुष्यों का (जीवि) जीवन है । अतः (समय) एक समय मात्र के लिए भी (मा पमामए) प्रमाद मत कर ।
भावार्थ:-हे गौतम ! जैसे समय पाकर वृक्ष के पत्ते पीले पड़ जाते हैं; फिर वे पक कर गिर जाते हैं । उसी प्रकार मनुष्यों का जीवन नाशशील है । अतः हे गौतम ! धर्म का पालन करने में एक क्षण मात्र भी व्यर्य मत गॅवाओ । मूलः-कुसग्गे जह ओस बिंदुए, थोब चिट्टइ लंबमाणए ।
एवं मणुआण जीवि, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२॥