________________
ज्ञान प्रकरण
अन्वयार्थः हे इन्द्रभूति ! (ह) इरा (लोए) लोवा में (अग्गिस्सिओ) अनैनित (परलोए) परलोक में (अणिस्सिओ) अनैनित (अ) और किसी के द्वारा' (वासीचंदणकप्पो) वसूले से छेदने पर या चंदन का दिलेपन करने पर
और (असणे) भोजन खाने पर तिहा) तथा (अणामणे अाशन ना, रामी में समान भाव रखता हो, वही महापुरुष है।
भावार्थ:-हे गौतम ! मोक्षाधिकारी वे ही मनुष्य हैं, जिन्हें इस लोक बे वैभयों और स्वर्गीय सुखों की चाह नहीं होती है। कोई उन्हें वसूले (शस्त्र विशेष) से छेदे या कोई उन पर चन्दन का विलेपन करे, उन्हें भोजन मिले या फाकाकशी करनी पड़े, इन सम्पूर्ण अवरथाओं में सदा रार्वदा समभाव में रहते हैं।
॥ इति पञ्चमोऽध्याय ।।