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निर्गन्ध-प्रवचन
अन्वयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (कम्मुणा) क्षमादि अनुष्ठान करने से (बमणो) ब्राह्मण (होइ) होता है, और (कम्मुणा) पर-पीड़ाहन व रक्षादि कार्य करने से (खत्तिओ) अत्री (होइ) होता है। इसी तरह (कम्मुणा) नीति पूर्व का व्यवहार कर्म करने से (वइसो) चैश्य (होइ) होता है। और (कम्मुणा) दूसरों को कष्ट पहुँपाने रूप कायं जो करे वह (सुद्दो) शूद्र (हवइ) होता है।
भावा:-हे गौतम ! बाहे सद में कुल का नुष्य क्यों न हो, जो क्षमा, सत्य, शील, तप आदि सदनुष्ठान रूप कर्मों का कर्ता होता है, वही ब्राह्मण है। केवल छापा सिलक कर लेने से ब्राह्मण नहीं हो सकता है। और जो भय, दुःख आदि से मनुष्यों को मुक्त करने का कर्म करता है, वही क्षत्रिय अर्थात् राजपुत्र है । अन्याय पूर्वक राज करने से तथा शिकार खेलने से कोई मी व्यक्ति आज तक क्षत्रिय नहीं बना । इसी तरह नीतिपूर्वक जो व्यापार करने का फर्म करता है वही वैश्य है। नापने, तौलने, लेन, देन आदि सभी में अनीतिपूर्वक व्यवहार कर लेने मात्र से कोई वैश्य नहीं हो सकता है ।
और जो दूसरों को संताप पहुंचाने वाले ही कमों को करता रहता है वहीं शूद है।
।। इति सप्तमोऽध्याय:॥