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धर्म-निरूपण
तक दूसरों से भी आरम्भ न करवाये। दशनी पडिमा म दश महीने तक अपने लिए बनाया हा मोजन न खावे । ग्यारहवीं पडिमा में ग्यारह महीने तक साधु के समान क्रियाओं का पालन वह करता रहे | शक्ति हो तो बालों का लोच मी करे, नहीं शक्ति हो तो हजामत करवाले, खुली दण्डी का रजोहरण बगल में रखे । मुंह पर मुंह-पत्ता हुई रवये । दोषों को दाल कर आपने ज्ञाति वालों के यहीं से भोजन लावे। इस प्रकार उत्तरोत्तर गुण बढ़ाते हुए प्रथम पडिमा में एकान्तर तप करे और दूसरी पडिमा में दो महीने तक बैले-बेले पारणा करे। इसी तरह ग्यारहवीं पडिमा में ग्यारह महीने तक ग्यारह-ग्यारह उपवास करता रहे। अर्थात एक दिन मोजन करे फिर ग्यारह उपवास करे । फिर एक दिन भोजन करे। यों लगातार ग्यारह महीने तक ग्यारह का पारणा करे।।
इस प्रकार गृहस्थ-धर्म पालते-पालते अपने जीवन का अंतिम समय यदि आ जाय तो अपच्छिमा मरणति था लेहणा असणाराहणा-सब सांसारिक व्यवहारों का सब प्रकार से आजन्म के लिए परित्याग करके संथारा' (समाधि) धारण करले, और अपने त्याग धर्म में किसी भी प्रकार की दोषापत्ति भूल से यदि हो गयी हो, तो आलोचक के पास उन बातों को प्रकाशित कर दे । जो वे प्रायश्चित्त उसके लिए दें उसे स्वीकार कर अपनी आत्मा को निर्मल बनाये फिर प्राणीमात्र पर यों मैत्री भाव रखे । मूल:- खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे ।
मित्ती मे सन्वभूएस, वेरं मज्झं ण केणई ।।५।। छाया:-क्षमयामि सर्वान् जीबान्, सर्वे जीवा क्षमन्तु मे ।
मंत्री में सर्वभूतेषु, बरं मम न केनापि ॥५॥ अन्वयार्थ:- (सवे) सब (जीवा) जीवों को (म्बामेमि) क्षमाता हूँ। (मे) मुझे (सधे) सब (जीवा) जीव (नमंतु) क्षमा करो (सम्वभूएसु) प्राणी मात्र में (मे) मेरी (मिती) मंत्री मावना है ( केणई) किसी के भी साथ (मज्म) मेरा (वर) वर (न) नहीं है।
1 Act of meditating that a particular person may die in 80
undistracted coodition of mind.