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धर्म-निरूपण
कम से कम पांच अणुव्रत और सात शिक्षानत यह बारह प्रकार के धर्म को धारण करना आवश्यकीय बताया है। वे इस प्रकार हैं-युलाओ पाणावायाओ बेरमणं-हिलते-फिरते स जीवों की बिना अपराध के देखमाल कर वेष वश मारने की नीयत से हिंसा न करना । मुसावापामो रमणं-जिस भाषा से अनर्थ पैदा होता हो और राम एवं भारत में भगासर हो. मी जोक विरुद्ध असत्य भाषा को तो कम से कम नहीं बोलना 1 लामो अविभावाणाओ वेरम-गुप्त रीति से किसी के घर में घुस कर, गांठ खोल कर, ताले में कुंजी लगा कर, लुटेरे की तरह पा और भी किसी तरह की जिससे व्यवहार मार्ग में मी लज्जा हो, ऐसी चोरी तो कम से कम नहीं करना 1 सरारसंतोसे'
–कूल के अग्रसरों की साक्षी से जिसके साथ विवाह किया है उस स्त्री के सिवाय अन्य स्त्रियों को माता एवं बहिन और बेटी की निगाह से देखना
और अपनी स्त्री के साथ भी कम से कम अष्टमी, चतुर्दशी, एकादशी, द्वितीया, पंचमी, अमावस्या, पूर्णिमा के दिन का संभोग त्याग करना । इच्छापरिमाणेखेत, कूप, सोना, चाँदी, धान्य, पशु आदि सम्पत्ति का कम से कम जितनी इच्छा हो उतनी ही का परिमाण करना ताकि परिमाण से अधिक सम्पत्ति प्राप्त करने की लालसा रुक जाय । यह मी गृहस्थ का एक धर्म है। गृहस्थ को अपने छठे धर्म के अनुसार, विसिव्वयचारों दिशा और ऊंची-नीची दिशाओं में गमन करने का नियम कर लेना । सातवें में उपभोग-परिभोग-परिमाण --खानेपीने की वस्तुओं की और पहनने की वस्तुओं की सीमा बांधना । ऐसा करने से कभी वह तष्णा के साथ भी विजय प्राप्त कर लेता है। फिर उससे मुक्ति भी निकट आ जाती है । इसका विशेष विवरण यों है
मूल:-इंगाली, वण, साडी, भाडी फोडी सुबज्जए कम्म ।
वाणिज्ज चेव य दंत-लक्खरसकेसविसविसयं ॥२॥
१ गृहस्थ-धर्म पालन करने वाली महिलाओं को भी अपने कुल के
अग्रसरों की साक्षी से विवाहित पुरुष के सिवाय समस्त पुरुष वर्ग को पिता, भ्राता और पुत्र के समान समझना चाहिए। और स्वपति के साय मी कम से कम पर्व तिमियों पर कुशील सेवन का परित्याग करना चाहिए ।