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जान प्रकरण
___ भावार्थ:-हे गौतम ! संसार में ऐसा कोई भी द्रव्य, गुण या पर्याय नहीं है जो इन पांच ज्ञानों से न जाना जा सके । प्रत्येक ज्ञेय पदार्थ यथायोग्य रूप से किसी न किसी ज्ञान का हिोता ही है ! पेमा डी नीकरों ने कहा है। मूल:-पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठइ सव्वसंजए।
अन्नाणी कि काही कि वा, नाहिइ छेयपावगं ||४|| छायाः-प्रथमं ज्ञानं ततो दया, एवं तिष्ठति सर्व संयतः।
___ अज्ञानी किं करिष्यति, किं वा ज्ञास्यति श्रेयः पापकम् ।।४।।
अन्वयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (पढम) पहले (नाणं) ज्ञान (तओ) फिर (दमा) जीव रक्षा (एवं) इस प्रकार (सध्वसंजए) सब साधु (चिटुइ) रहते हैं। (अनाणी) अज्ञानी (किं) क्या (काही) क्या करेगा ? (वा) और (किं) केसे वह अज्ञानी (छेय पावंग) श्रेयस्कर और पापमय मार्ग को (नाहिइ) जानेगा ?
भावार्थ:- है गौतम ! पहले जीव रक्षा संबंधी ज्ञान की आवश्यकता है। क्योंकि, बिना ज्ञान के जीव-रक्षा प क्रिया का पालन किसी भी प्रकार हो नहीं सकता, पहले ज्ञान होता है, फिर उस विषय में प्रवृत्ति होती है। संयमधील जीवन बिताने वाला मानव वर्ग भी पहले झान ही का सम्पादन करता है, फिर जीव रक्षा के लिए कटिबद्ध होता है। सच है, जिनको कुछ मी ज्ञान महीं है, वे क्या तो दया का पालन करेंगे ? और क्या हिताहित ही को पहनानेंगे? इसलिए सबसे पहले ज्ञान का सम्पादन करना आवश्यकीय है । यहाँ 'दया' पाब्द उपलक्षण है, इसलिए उससे प्रत्येक क्रिया का अर्थ समझना चाहिए । मूलः-सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावमं ।
उभयं पि जाणई सोच्चा, जं छेयं तं समायरे ||५|| छाया:-श्रुत्वा जानाति कल्याणं, श्रुत्वा जानाति पापकम् ।
उभयेऽपि जानाति श्रुत्वा, यच्छे यस्तत् समाचरेत् ।।५।। अग्वयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (सोच्चा) सुन कर (कस्लाणं) कल्याणकारी मार्ग को (जाणइ) जानता है, और (सोच्चा) सुनकर (पावगं) पापमय मार्ग
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