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धर्म स्वरूप वर्णन
भावार्थ:-हे गौसम ! पूर्ण ज्ञानियों के द्वारा कहा हुआ मह धर्म ध्रव के समान है। तीन काल में निश्य है। शाश्वत है । इसी धर्म को अङ्गीकार कर के अनंत जीव भूतकाल में कर्मों के बंधन से मुक्त होकर सिद्ध अवस्था को प्राप्त हो गये हैं। वर्तमान काल में हो रहे हैं। और भविष्यत् काल में भी इसी धर्म का सेवन करते हुए अनंत जीव मुक्ति को प्राप्त करेंगे।
इति तृतीयोऽध्याय: