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षट् द्रव्य निरूपण
छाया:- एकत्वञ्च पृथक्त्वञ्च संख्या संस्थानमेव च । संयोगाश्च विभागाश्च पर्यंवाणां तु लक्षणम् ||१६||
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अग्वयार्थ :- हे इन्द्रभूति ! (पज्ञवाणं) पर्यायों का ( लक्खणं) लक्षण यह है, कि ( एगत ) एक पदार्थ के ज्ञान का (च) और ( पुहत्तं ) उससे भिन्न पदार्थ ज्ञान का (च) ()का (य) और (संठाणमेव ) आकार-प्रकार का ( संजोगा ) एक से दो मिले हुओं का (य) और ( विभागाय ) यह इससे अलग है, ऐसा ज्ञान जो करावे वही पर्याय है ।
भावार्थ :- हे गौतम ! पर्याय उसे कहते है, कि यह अमुक पदार्थ है, यह उससे अलग हैं, यह अमुक संख्या वाला है, इस आकार-प्रकार का है, यह इसने समूह रूप में हैं, आदि ऐसा जो ज्ञान करावे वही पर्याय है । अर्थात् जैसे मह मिट्टी थी पर अब घट रूप में है । यह घट, उस घट से पृथक् रूप में है। यह घट संख्या बल है । पहले नम्बर का है या दूसरे नम्बर का है। यह गोल आकार का है। यह चौरस आकार का है। यह दो घट का समूह है। यह घट उस घट से भिन्न है | यदि ऐसा ज्ञान जिसके द्वारा हो वही पर्याय है ।
॥ इति प्रथमोऽध्यायः ॥