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णमोकार प्रेम
सानी जीव रंच मात्र भी मद नहीं करते हैं । ऐसा जो मद नाम दसवा दोष है महंत भगवान् में नहीं पाया जाता है। ऐसे प्रहन्त भगवान् के चरण की भक्ति मेरे चित्त में हमेगा बसी रहे।
(११) मोह रोष-यह कैसा दोष है ? मोह रूपी दोष जिसके होता है वह प्रचेतन हो जाता है।
भावार्य-मोह मदिरा के समान है। जैसे मदिरा पीकर प्राणी बेहोश हो जाता है उसी प्रकार मोह में मग्न होते हुए वह पागल की तरह हो जाता है।
दोहाः से मदिरा पान त, सुष पुष सर्व विलाय ।
से मोह कर्म उवय, जीव गहल हो जाय ॥ सो यह मोह कैसा है ? जब बलदेव, कृष्ण महाराज के प्रचेतन कलेबर को छ: महीने पर्यन्त प्रपने कन्धे पर लेकर भ्रमण करते रहे तो क्षुद्र पुरुष की क्या बात? ऐसा मोह रूपी शत्र प्रहन्त रमात्मा ने ध्यान रूपी खड़ग से जीत लिया है। ऐसे परमात्मा के चरण कमल हमेशा मेरे हदय रुपी सरोवर में वास करें और अर्हन्त की वाणीरूपी किरण से वह कमल सदा काल बिकसित रहे ।
(१२) भय दोष-कैसा है यह भय दोष? भय नामक दोष के पाते ही जीव मात्र थर थर कापने लग जाता है। जब सुध-बुध भूल जाता है और जान जाता है कि यह भय मरण के लष भ्राता के समान है।
भावार्ष-जिस प्रकार मृत्यु से जीव कांपता है उसी प्रकार भय से भी जीव कापता है। यह भय सात प्रकार का है
बोहा-इस भव भय, परलोक भय मरन वेदना जानु ।
अनरक्ष, अनुगुप्ति भय, अकस्मात भय सात ।। अर्यात-१, इह लोक भय, २. परलोक भय , ३, मरण भय, ४. वेदना भय, ५, अरक्षा भय, ६. अनुगुप्ति भय, ७. अकस्मात् भय ये सात प्रकार के भय हैं।
यह भय कैसा है ? जिसको भय होता है वह व्याकुल होकर इधर-उधर छिपता रहता है। जैसे कि भय के होते ही महादेव जी नाम मात्र 'स्वयम्भू' नाम धारक भस्मासुर के भय से विष्णु महाराज के सिंहासन के नीचे जाकर छिप गये और कृष्ण महाराज जन्म समय ही कंसराज के भय से मथरा को छोड कर बन्दावन को चले गये और ग्वालिनी यशोदा की पुत्री को कृष्ण के बदले में कंस को सौंपा। तब कंस ने उस कन्या की नासिका को. दबाकर चपटा कर दिया।
भावार्थ-नासिका के ऊपर मुष्टिका प्रहार कर देने से नासिका चपटी हो गई । ऐसा जो दामोदर पौरों की बलि देखकर स्वयं बचे तो धन्य है ऐसे ईश्वरपने को! पुन:यशोदा नामक ग्यालिनियों के स्ननसे उत्पन्न दुग्धपान करके कृष्ण वृद्धि को प्राप्त हुए। तत्पश्चात् गायों और भैसों को जाकर घेर लिया और ग्वालिनियों के दधि कोचुराकर खाया । फिर भी उन्हें ईश्वर मानते हैं। ऐसे भोले-भाले जीवों की अज्ञानता को क्या कहें ? ये लोग मिथ्यात्व के अन्धकार में अन्धे हो गये हैं। अब विचारिए कि जिस भय नामक दोष ने धूर्जटी पौर प्रनंग पिता को भी सताया तो अन्य पुरुषों का क्या कहना? ऐसा भय नामक दोष अरहन्त भगवान् सकल परमात्मा के नहीं है, अतः ऐसे सकल परमात्मा हमारी रक्षा करें।