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28 :: मूकमाटी-मीमांसा
कहीं अन्यत्र कभी भी/न रच ! न रच ! न रच!" (पृ. ३५९) धरती: "धरती तीर"/यानी,/जो तीर को धारण करती है
या शरणागत को/तीर पर धरती है/वही धरती कहलाती है !" (पृ. ४५२) धरणी : "धरणी नीर"ध/नीर को धारण करे सो 'धरणी
नीर का पालन करे सो"धरणी!" (प्र. ४५३) भाषा विज्ञान में जो 'संगम' (जंक्चर) है उसकी सहायता से अनेक शब्दों को हृदयंगम कराया गया है : आदमी: "आदमी वही है/जो यथा-योग्य/सही आदमी है।" (पृ. ६४) कृपाण: "हम हैं कृपाण/हम में कृपा न !" (पृ. ७३) कामना: “यही मेरी कामना है/कि/आगामी छोरहीन काल में
बस इस घट में/काम ना रहे !" (पृ. ७७) शीतलता: "मेरी स्पर्शा पर आज ।/हर्षा की वर्षा की है/तेरी शीतलता ने ।
माँ ! शीत-लता हो तुम/साक्षात् शिवायनी!" (पृ. ८५) किसलय : "किसलय ये किसलिए/किस लय में गीत गाते हैं ?" (पृ. १४१) कायरता: "मन के गुलाम मानव की/जो कामवृत्ति है।
तामसता काय-रता है/वही सही मायने में/भीतरी कायरता है !" (पृ. ९४) अनेक शब्दों को व्युत्पत्ति से स्पष्ट किया गया है । यह व्युत्पत्ति कहीं निरुक्त पर आधारित है और कहीं लोकनिरुक्ति पर । सुधी विद्वान् श्री लक्ष्मीचन्द्रजी ने 'प्रस्तवन' में 'कुम्भकार', 'गधा', 'नारी', 'सुता', 'दुहिता', 'स्त्री', 'अबला' शब्दों की ओर संकेत भी किया है । कुछ और शब्द भी लिए जा सकते हैं : कला : " 'क' यानी आत्मा-सुख है/'ला' यानी लाना-देता है/कोई भी कला हो
कला मात्र से जीवन में सुख-शान्ति-सम्पन्नता आती है।" (पृ. ३९६) वैखरी: " 'वै' यानी निश्चय से/ खरी' यानी सच्ची है।" (पृ. ४०३) समूह: “सम-समीचीन ऊह-विचार है/जो सदाचार की नींव है।" (पृ. ४६१)
स्थान-स्थान पर अलंकारों की छटा, चुटीले कथोपकथन, पात्रों का सजीव चित्रण, शब्दों की आत्मा का दर्शन 'मूकमाटी' महाकाव्य को गत शताब्दी के अन्तिम दशक का हृदयग्राही काव्य सिद्ध करता है । इस अप्रतिम महाकाव्य से जो जीवन दृष्टि मिलती है, वह अनुपम है । आचार्यप्रवर ने काव्य के माध्यम से अध्यात्म-दर्शन में प्रवेश कराया है।
पृष्ठ२३६.२३० लो. विचारों में समानता-.. ---आकुलता करनी बदी है।