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मूकमाटी-मीमांसा :: 261
कम्बल:
आकाश में किसी भी प्रकार से उत्पन्न क्षोभ, जो वायु तरंग द्वारा कानों तक जा कर सुनाई पड़े, शब्द कहलाता है। शब्दकोश क़ब्रिस्तान है और शब्द उसकी कब्रों में सोई हुई ज़िन्दा लाशें । जब कोई जादूगर (साहित्यकार) अपनी जादुई छड़ी रूपी लेखनी की छुवन से उन्हें जगाता है तो शब्द अभिव्यक्ति और सम्प्रेषण के रुपहले परिधान पहनकर चमत्कार उत्पन्न कर देते हैं। आचार्य श्री विद्यासागरजी शब्दों के जादूगर हैं। उन्होंने शब्दों को नए अर्थ प्रदान किए हैं तथा उन्हें नए परिवेश में प्रयोग किया है। कुछ शब्दों का चमत्कारी अर्थ प्रस्तुत है : गधा : "मेरा नाम सार्थक हो प्रभो !/यानी/गद का अर्थ है रोग
हा का अर्थ है हारक/ मैं सबके रोगों का हन्ता बनें / ''बस,
और कुछ वांछा नहीं/गद-हागदहा'..!" (पृ. ४०) अस्त्र, शस्त्र, वस्त्र : “अस्त्रों, शस्त्रों, वस्त्रों/और कृपाणों पर भी/'दया-धर्म का मूल है'
लिखा मिलता है ।/किन्तु,/कृपाण कृपालु नहीं हैं/वे स्वयं कहते हैं हम हैं कृपाण/हम में कृपा न !/कहाँ तक कहें अब !/धर्म का झण्डा भी डण्डा बन जाता है/शास्त्र शस्त्र बन जाता है/अवसर पाकर।" (पृ. ७३)
“कम बलवाले ही/कम्बलवाले होते हैं और/काम के दास होते हैं।
हम बलवाले हैं/राम के दास होते हैं।” (पृ. ९२) संगीत प्रीतिः "संगीत उसे मानता हूँ/जो संगातीत होता है/और/प्रीति उसे मानता हूँ जो अंगातीत होती है/मेरा संगी संगीत है/सप्त-स्वरों से अतीत..!"
(पृ. १४४-१४५) दोगला:
""मैं दो गला"/इस से पहला भाव यह निकलता है, कि/मैं द्विभाषी हूँ भीतर से कुछ बोलता हूँ/बाहर से कुछ और "/पय में विष घोलता हूँ। ...दूसरा भाव सामने आता है :/मैं दोगला/छली, धूर्त, मायावी हूँ अज्ञान-मान के कारण ही/इस छद्म को छुपाता आया हूँ।/...तीसरा भाव क्या है - ...सब विभावों-विकारों की जड़/'मैं" यानी अहं को
दो गला-कर दो समाप्त ।"(पृ. १७५) महिला : "जो/मह यानी मंगलमय माहौल,/महोत्सव जीवन में लाती है
महिला कहलाती वह।" (पृ. २०२) लक्ष्मण रेखा : "लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन/रावण हो या सीता
राम ही क्यों न हों/दण्डित करेगा ही !"(पृ. २१७) श्रीफल :
"प्राय: सब की चोटियाँ/अधोमुखी हुआ करती हैं,/परन्तु श्रीफल की ऊर्ध्वमुखी है।/हो सकता है/इसीलिए श्रीफल के दान को मुक्ति-फल-प्रद कहा हो।” (पृ. ३११)