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मूकमाटी-मीमांसा :: 351 भी रचना 'सद्यः परनिर्वृति:' प्रदान करने के कारण स्पृहणीय है । शब्द प्रयोग, शब्द शक्तियों एवं भाषा के अभिनव प्रयोगों ने 'मूकमाटी' को अत्यन्त सशक्त वाणी प्रदान की है । छन्द, रस, अलंकार, प्रकृति वर्णन, सूक्ति, विविध दर्शन, बहुज्ञता, प्रसाद गुण एवं भावों की प्रेषणीयता का ऐसा अद्भुत सामंजस्य प्राय: कम देखा जाता है । इस लेख में केवल अलंकारों की चर्चा की गई है। अलंकारों के अन्य उदाहरणों की सूचना 'मूकमाटी' की पृष्ठ संख्या के संकेत मात्र द्वारा दी गई है। यह उद्देश्य रहा है कि जिज्ञासु शोधार्थी पाठकगण मूल ग्रन्थ को अवश्य पढ़ें और पूर्ण आनन्द प्राप्त कर सकें। 'मूकमाटी' एक सन्त की रचना है, नि:स्पृह व्यक्ति की रचना है, इसी कारण से इसका महत्त्व बढ़ जाता है।
सरस वचन बोले, ज्ञान के नेत्र खोले अनुपम रस घोले मानसी गागरी में। सुखकर उपदेशों-सूक्तियों की निराली सहृदय हृदयों को भेंट है 'मूकमाटी' ॥
पृ. ३४३ कायोत्सर्गका विसर्जन.-- संयमोपकरण दिया 'मयर-पखों का, जो मृदुल कोमललपुमुनुल है।
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