Book Title: Mukmati Mimansa Part 03
Author(s): Prabhakar Machve, Rammurti Tripathi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 507
________________ नारी शब्द के पर्यायों की सार्थक अभिव्यंजना : 'मूकमाटी' __डॉ.(श्रीमती) नीलम जैन नारी और नारी के पर्यायवाची सदा से ही इस पुरुषप्रधान समाज में नारी के प्रति नर के दृष्टिकोण से ही अभिहित किए जाते रहे हैं। इसीलिए नारी, स्त्री, महिला, कुमारी, अबला इत्यादि कोई भी शब्द हो--एक ऐसी भीरु, शक्तिहीन, दीन, मतिहीन अंगों-उपांगों का एक ऐसा कंकाल प्रस्तुत करते हैं जिसे जिसने चाहा संवेदनशील, सहृदय अथवा जीवन्त समझा और जिसने चाहा स्पन्दनहीन, निराश्रय, मृतक-तुल्य समझ उपहासित किया । परन्तु समयसमय पर नारी को कीचड़ से निकाल कमलवत् प्रतिष्ठित करने वाला सच्चा इक्का-दुक्का मानव-रत्न भी इस धरा पर प्रसूत हुआ, जिससे नारी जाति का संरक्षण एवं संवर्द्धन सम्भव हुआ । आज भी परम सौभाग्य से ऐसे श्रमणरत्न, आचार्यप्रवर, गुरुमणि, कल्मषनाशक, सुविवेकी, सृजक साधु श्री विद्यासागरजी हमें पुण्योदय से प्राप्त हुए, जो नाम से ही नहीं, कर्म से भी अगाध विद्या-सिन्धु हैं। माटी जैसी तुच्छ, पददलित वस्तु को भी पवित्र मंगल कलश की प्रतिष्ठित पदवी पर विभूषित करने वाले आचार्यदेव ने अपने ऐतिहासिक, कालजयी इस 'मूकमाटी' महाकाव्य में नारी को अभूतपूर्व गरिमा एवं महिमा-मण्डित पद देकर नारी विषयक सभी शब्दों का एकदम नया विश्लेषण, सार्थक, सटीक, उपयुक्त एवं सही विवेचन प्रस्तुत किया है। ___पूज्य गुरुदेव सुतर्को से तत्काल नारी जाति पर आरोपित - ‘अधोगामिनी', 'पापिनी', 'दुराचारिणी' जैसे मर्मान्तक बाणों से कैसे छुटकारा दिला देते हैं, वह अवलोकनीय है : "कुपथ-सुपथ की परख करने में/प्रतिष्ठा पाई है स्त्री-समाज ने।" (पृ. २०२) नारी शब्द : प्राय: नारी का अर्थ आधुनिक अर्थवेत्ता कुछ ऐसे करते हैं- न + अरि, अर्थात् इनके समान कोई दुश्मन नहीं है । पर करुणानिधान गुरुदेव नारी को इस कलंक से कुछ इस प्रकार बचाते हैं : "इनकी आँखें हैं करुणा की कारिका/शत्रुता छू नहीं सकती इन्हें मिलन-सारी मित्रता/मुफ़्त मिलती रहती इनसे । यही कारण है कि इनका सार्थक नाम है 'नारी'/यानी-/'न अरि' नारी"/अथवा ये आरी नहीं हैं/सो 'नारी"।" (पृ. २०२) महिला : बेचारगी की सूचक 'मही' अर्थात् पृथ्वी के प्रति आस्था पैदा करनेवाली महिला को कितने सुन्दर, आकर्षक एवं अप्रतिम शब्दों से गुरुप्रभो मण्डित करते हैं : "जो/'मह' यानी मंगलमय माहौल,/महोत्सव जीवन में लाती है। 'महिला' कहलाती है वह ।/...मही यानी धरती/धृति-धारणी जननी के प्रति अपूर्व आस्था जगाती है। और पुरुष को रास्ता बताती है सही-सही गन्तव्य का-/'महिला' कहलाती वह !/इतना ही नहीं, और सुनो ! जो संग्रहणी व्याधि से ग्रसित हुआ है/जिसकी संयम की जठराग्नि मन्द पड़ी है, परिग्रह-संग्रह से पीड़ित पुरुष को/मही यानी मठा-महेरी पिलाती है,/'महिला' कहलाती है वह !" (पृ. २०२-२०३) अबला : अबला शब्द प्राय: नारी की शक्तिहीनता का द्योतक माना जाता है, जो प्राय: उसे अशक्तता,

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