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मूकमाटी-मीमांसा :: 433
प्रशस्त आचार-विचार वालों का / जीवन ही समाजवाद है । समाजवाद समाजवाद चिल्लाने मात्र से / समाजवादी नहीं बनोगे ।” (पृ. ४६१)
ऊपर वर्णित समष्टि में जीने की भावना ही सच्चा समाजवाद है ।
साहित्य समाज का दर्पण होता है। इस दृष्टि से यदि हम 'मूकमाटी' को देखें तो पाएँगे कि आधुनिक युग का समाज तथा सामाजिक विचारधारा प्रस्तुत महाकाव्य में पूर्णरूपेण चित्रित हुई है। प्राचीन तथा स्थापित मान्यताओं को कवि ने नवीन रूप में उद्घाटित भी किया है । सम्बन्धों की नई व्याख्याएं की हैं और शब्दों के नए अर्थ उद्भावित हुए हैं।
'मूकमाटी' महाकाव्य में तत्कालीन समाज प्रतिबिम्बित हुआ है :
" परन्तु खेद है कि / लोभी पापी मानव
पाणिग्रहण को भी / प्राण- ग्रहण का रूप देते हैं ।
प्राय: अनुचित रूप से / सेवकों से सेवा लेते / और वेतन का वितरण भी अनुचित ही ।
ये अपने को बताते / मनु की सन्तान ! / महामना मानव ! देने का नाम सुनते ही / इनके उदार हाथों में
पक्षाघात के लक्षण दिखने लगते हैं ।" (पृ. ३८६-३८७)
यह सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक सत्य है कि मानव ही नहीं संसार का प्रत्येक प्राणी अहिंसक भाव पर ही निर्भय होकर शान्ति प्राप्त कर सकता है । अत: 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' और 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की महती भावनाओं की कवि ने पुष्टि की है ।
महाकाव्य के प्रारम्भ में ही माटी रूपी आत्मा की छटपटाहट इन शब्दों में व्यक्त हुई है :
" इस पर्याय की / इति कब होगी ? / इस काया की
च्युति कब होगी ? /बता दो, माँ इसे !" (पृ. ५)
हिन्दी के महान् कवि स्व. जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य 'कामायनी' में प्रतीकात्मक शैली में मानव मन की विकास गाथा को रूपायित किया गया है तो 'मूकमाटी' महाकाव्य में कवि ने संसार के प्राणी मात्र की आत्मा की विकास यात्रा के मार्ग का चित्रण किया है । इस दृष्टि से 'मूकमाटी' महाकाव्य हिन्दी के ही नहीं, अपितु समस्त भारतीय भाषाओं की श्रेष्ठ कृतियों में परिगणित किए जाने योग्य महाकाव्य है।
युगीन समाज का प्रतिनिधित्व एवं युग चेतना का उद्घोष करने वाली इस कृति को विद्वान् लेखक लक्ष्मीचन्द्र जैन ने 'आधुनिक जीवन का अभिनव शास्त्र' कहा है। प्रोफेसर शीलचन्द्र जैन ने अपनी कृति 'मूकमाटी महाकाव्य : काव्यशास्त्रीय निकष' में इसे 'जीवन के शाश्वत सत्य का निरूपण, मानव जीवन की मूलभूत समस्याओं पर विचार एवं सम्पूर्ण विश्व मानव समाज का विश्लेषण - संश्लेषण' माना है । अत: 'मूकमाटी' विश्व साहित्य के टी. एस. ईलियट कृत 'वेस्ट लैंड' तथा मिल्टन के 'पैराडाइज़ लॉस्ट' काव्यों की कोटि में आता है । निःसन्देह 'मूकमाटी' एक कालजयी महाकाव्य है जिस पर समय की धुंध अपना प्रभाव नहीं जमा सकेगी।
['अर्हत् वचन' इन्दौर - मध्यप्रदेश, अप्रैल- जुलाई, १९९२ ई.]
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