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मूकमाटी-मीमांसा :: 353 पंक्ति गुड़ गोबर कर बैठती है। काश ! आचार्यश्री इधर सजग रहे होते ।
"सीमातीत शून्य में/नीलिमा बिछाई,/और इधर''नीचे निरी नीरवता छाई,/निशा का अवसान हो रहा है
उषा की अब शान हो रही है।” (पृ. १) इस अंश में प्रथम चार पंक्तियाँ उत्कृष्टतर काव्य हैं किन्तु पाँचवीं अपेक्षित मात्रा में सुन्दर नहीं है और छठी तो नहीं रहती तो ही सुन्दर होता । किन्तु सौन्दर्य पूर्णता में सम्भव कहाँ है ? 'हम अधूरे, अधूरा हमारा सृजन' (नीरज)।
काव्य में कथात्मकता का समन्वय रसास्वादन में सहायक होता है तथा साधारणीकरण को सम्भव कर देता है। दार्शनिक सन्त की आत्मा का संगीत तभी तो सार्थक होगा, जब श्रोता ध्वनि के साथ अर्थ को भी हृदयंगम करेगा। इसमें कथा के तन्तु सहायक होते हैं। कोई नाहक इस ऊहापोह में पड़े कि यह महाकाव्य है कि खण्ड काव्य कि मात्र काव्य ! मेरे विचार से यह आद्यन्त सरस मोहक काव्य है जिसमें भाव और विचारों की सुन्दर निरन्तरता अखण्ड, अशिथिल है।
या पर विजय प्राप्त करना सबकेवरी की बात नहीं और वह भी स्त्री- पर्याय में अनहोनी-सी घटना