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मूकमाटी-मीमांसा :: 295
स्थान ले बैठा है तो शिष्य-साधना की अप्रस्तुत कथा में कर्मवीर दूसरों से आगे निकल गया है। निष्कर्ष रूप में कर्म (साधना) वीर रस अंगीरस के रूप में उभर कर आया है। वैसे उनके काव्य में रस सम्बन्धी मान्यताएँ कुछ नए ही रूप में प्रकट हुई हैं। कुछ उदाहरण देखिए, जहाँ रस की उपयोगिता और उसके महत्त्व का मूल्यांकन इस प्रकार किया गया है:
“वीर-रस के सेवन करने से/तुरन्त मानव-खून खूब उबलने लगता है/काबू में आता नहीं वह दूसरों को शान्त करना तो दूर,/शान्त माहौल भी खौलने लगता है
ज्वालामुखी-सम।" (पृ. १३१) वीर रस का उपहास करता हुआ हास्य रस ठहाका लगाता है । कवि कहता है कि 'खेद भाव के विनाश हेतु हास्य का राग भले ही आवश्यक हो, किन्तु वेद-भाव के विकास हेतु हास्य का त्याग अनिवार्य है क्योंकि वह भी कषाय है' (पृ. १३३)। हास्य ने करवट बदल कर रौद्र रस को आमन्त्रित किया । सहृदय कवि ने उसके सात्त्विक एवं कायिक मनोभावों को रस शास्त्र से अनुमोदित रूप में प्रस्तुत किया है :
“घटित घटना विदित हुई उसे/चित्त क्षुभित हुआ उसका पित्त कुपित हुआ/भृकुटियाँ टेढ़ी तन गईं/आँख की पुतलियाँ
लाल-लाल तेजाबी बन गईं।” (पृ. १३४) इसी प्रकार विस्मय रस का शास्त्रीय रूप अभिव्यक्त हुआ है। कायिक अनुभावों की एक छटा द्रष्टव्य है :
"इस अद्भुत घटना से/विस्मय को बहुत विस्मय हो आया । उसके विशाल भाल में/ऊपर की ओर उठती हुई लहरदार विस्मय की रेखाएँ उभरों/कुछ पलों तक विस्मय की पलकें अपलक रह गईं !/उस की वाणी मूक हो आई/और
भूख मन्द हो आई।" (पृ. १३८) भक्ति और शान्त रस कहीं उपदेश रूप में तो कहीं रसशास्त्रीय रूप में अभिव्यक्त हुआ है । कुम्भ कलश की उपयोगिता तथा गुरु के स्वागत के उपरान्त सेठ के हृदय में आशीर्वचन सुनकर जिस भक्ति का प्रादुर्भाव हुआ है, उसमें अश्रु, शोक, ग्लानि, विषाद रूप संचारी भावों का सफल सन्निवेश है। उदाहरण द्रष्टव्य है :
"लोचन सजल हो गये/पथ ओझल-सा हो गया पद बोझिल से हो गये/रोका, पर/रुक न सका रुदन, फूट-फूट कर रोने लगा/पुण्य-प्रद पूज्य-पदों में
लोटपोट होने लगा।" (पृ. ३४६) लेख विस्तार भय से निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि दार्शनिक तत्त्व के प्राधान्य होने पर भी लेखक ने सभी रसों का स्वरूप, उससे अधिक भावों का वर्णन, भाव सबलता, भाव सन्धि एवं भावाभास का जिस प्रकार वर्णन किया है, यद्यपि वह रस-दशा को नहीं पहुँच सके, फिर भी पाठकों की चित्त वृत्ति विस्तार में पूर्ण सक्षम हुए हैं।
ऊपर 'मूकमाटी' की काव्यानुभूति पर विहंगम दृष्टिपात किया गया है । यह देखा गया है कि इसमें दार्शनिक