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286 :: मूकमाटी-मीमांसा
यही नहीं, कवि का कथन है कि जब तक 'भी' जीवित है तब तक लोकतन्त्र भी सुरक्षित है। 'भी' स्वच्छन्दता और मदान्धता को मिटानेवाला है तथा स्वतन्त्रता को साकार करनेवाला । कवि कथन है :
“सद्विचार सदाचार के बीज/'भी' में हैं, 'ही' में नहीं।" (पृ. १७३) आचार्य श्री विद्यासागरजी शब्द-विनोद करते हुए बीच-बीच में अपनी विविध धारणाएँ व्यक्त करते चलते हैं। नारी, महिला, अबला आदि स्त्रीवाचक शब्दों को लेकर उन्होंने पर्याप्त रंजक शब्द-विनोद किया है ।
शब्दों की पारम्परिक व्याख्या करनेवाला व्यक्ति जहाँ शब्द की व्युत्पत्ति के पश्चात् उससे अर्थ का निष्कर्षण करता है वहीं आचार्यश्री के सम्बन्ध में कहना कठिन है कि उनके ध्यान में पहले शब्दों की व्याख्या-पद्धति आती है कि अर्थ-बोध होता है। 'नारी' की व्याख्या देखिए :
" 'न अरि' नारी""/अथवा/ये आरी नहीं है/सोनारी" (पृ.२०२) इसी प्रकार 'महिला' शब्द की सिद्धि जिन अर्थों के साथ होती है, उसमें पहला तो यह कि वह 'मह' यानी मंगलमय माहौल लाती है । इसलिए 'महिला' है। दूसरा अर्थ यह कि वह जीवन के प्रति उदासीन और हतोत्साही हुए पुरुष में 'मही' यानी धरती के प्रति अपूर्व आस्था जगाती है।' वह पुरुष को सन्मार्ग के दर्शन कराती है । इसलिए 'महिला' है। 'महिला' शब्द की एक औषधिपरक व्याख्या प्रस्तुत करता हुआ कवि कहता है कि संग्रहणी व्याधि से ग्रस्त पुरुष को वह : “मही यानी/मठा-महेरी पिलाती है" (पृ.२०३)। है न यहाँ सुन्दर शब्द-विनोद !
फिर, कवि 'नारी' शब्द के पर्याय अबला' में सुन्दर अर्थों का आरोपण करता है, जो जीवन में अव, अवगम या ज्ञानज्योति लाती है और तिमिर या तामसता को मिटाती है । इसे अन्य प्रकार से भी कहा गया है- जो पुरुष की चित्तवृत्ति को विगत की दशाओं और अनागत की आशाओं से पूरी तरह हटाकर अब' यानी आगत - वर्तमान में लाती है, वह 'अबला' कहलाती है। इसी तरह अबला' का एक और नया अर्थ देखिए :
"बला यानी समस्या संकट है/न बला "सो अबला/समस्या-शून्य-समाधान !
...इसलिए स्त्रियों का यह/ 'अबला' नाम सार्थक है !" (पृ. २०३) स्त्रियों के प्रति कवि का उदात्त भाव यहीं तक सीमित नहीं है । वह उसके 'कुमारी' रूप की प्राथमिक मंगलमयता का भी स्मरण कराता है । 'कुमारी' के मंगल रूप की सिद्धि कवि ने इस प्रकार की है :
" 'कु' यानी पृथिवी/'मा' यानी लक्ष्मी/और/'री' यानी देनेवाली इससे यह भाव निकलता है कि/यह धरा सम्पदा-सम्पन्ना
तब तक रहेगी/जब तक यहाँ 'कुमारी' रहेगी।" (पृ. २०४) नारी के प्रति सम्मान भाव आधुनिक हिन्दी कविता में छायावाद काल से ही देखने को मिलने लगता है। आचार्य श्री विद्यासागरजी ने नारी के हर रूप के प्रति सम्मान भाव दर्शाया है । एक पुरुष का जीवन नारी के बिना शववत् हो जाता है, इसे भाँति-भाँति से शैव दर्शन से प्रभावित कविवर जयशंकर प्रसाद ने भी दिखाया है। उन्होंने नारी को पुरुषों की प्रेरिका के रूप में देखा है। कविवर आचार्य श्री विद्यासागरजी का भी मानना है कि पुरुषार्थों की सिद्धि के लिए नारी