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मूकमाटी-मीमांसा :: 27
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भेद से अभेद की ओर/वेद से अवेद की ओर
बढ़ती है, बढ़नी ही चाहिए।” (पृ. २६७) चौथे खण्ड - 'अग्नि' की परीक्षा : चाँदी-सी राख' में कथा-शिल्प का अद्भुत विस्तार है। इस खण्ड में कवि, कथाकार और सर्वोपरि सन्त की अपूर्व अनुभूतियों का संगम है । प्रकारान्तर से युगीन परिस्थितियों का प्रतिबिम्ब ही है, जैसे:
. “प्राय: अपराधी-जन बच जाते/निरपराध ही पिट जाते।" (पृ. २७१) ० "इसे हम गणतन्त्र कैसे कहें ?/यह तो शुद्ध 'धनतन्त्र' है
या/मनमाना 'तन्त्र' है !" (पृ. २७१) ० "वस्तुओं के व्यवसाय,/लेन-देन मात्र से
उनकी सही-सही परख नहीं होती/अर्थोन्मुखी-दृष्टि होने से।" (पृ. ३०४)
"प्रशस्त आचार-विचार वालों का/जीवन ही समाजवाद है।" (पृ. ४६१) लघु होते हुए भी दीपक का महत्त्व है :
"दीपक संयमशील होता है/...मितव्ययी है दीपक ! कितना नियमित, कितना निरीह !/छोटा-सा बालक भी अपने कोमल करों में/मशाल को नहीं,/दीपक ले चल सकता है प्रेम से। मशाल की अपेक्षा/अधिक प्रकाशप्रद है यह। /...और/माटी का कुम्भ है
पथ-प्रदर्शक दीप- समान।" (पृ. ३६९ से ३७१) आतंकवाद क्यों पनपता है :
0 "यह बात निश्चित है कि/मान को टीस पहुँचने से ही,
आतंकवाद का अवतार होता है ।/अति-पोषण या अतिशोषण का भी यही परिणाम होता है।" (पृ. ४१८) "जब तक जीवित है आतंकवाद
शान्ति का श्वास ले नहीं सकती/धरती यह।" (पृ. ४४१) आचार्य विद्यासागर तो शब्दों के जादूगर हैं। उनके द्वारा विलोम मात्र से अनेक शब्दों के अर्थ स्पष्ट किए गए
दया :
खरा:
नदी :
"स्व की याद ही/स्व-दया है/विलोम-रूप से भी यही अर्थ निकलता है/या "द "दया ।" (पृ. ३८) "राख बने बिना/खरा-दर्शन कहाँ ?/रा'"ख"ख"रा!" (पृ. ५७) "न"दीदी"न !/जल से विहीन हो दीनता का अनुभव करती है नदी।" (पृ. १७८) " नाली "ली "ना/लीना हुई जा रही है धरती में लज्जा के कारण।" (पृ. १७८) । “च "र"ण 'नर'च/चरण को छोड़ कर
नाली :
चरण: