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154 :: मूकमाटी-मीमांसा
prudent have always laughed at them and said that these did not belong to reality, but the poet in man knows that reality is a creation, and human reality has to be called forth from its obscure depth by man's faith which is creative."
हिन्दी के प्रसिद्ध महाकवि एवं जन-मन की आस्था के नायक सन्तशिरोमणि तुलसीदास ने इस विश्वास को ही 'रामचरितमानस' में 'राम'का गुण-ग्राम प्रस्तुत करने के पूर्व श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की वन्दना की है :
"भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणी ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्तःस्थमीश्वरम् ॥” (बालकाण्ड, २) तुलसी ने अपने एक पूज्यपात्र काकभुशुण्डि के मुख से कलिमहिमा-वर्णन के सन्दर्भ में खुली उद्घोषणा कराते हुए अपना मत प्रतिपादित किया है :
“कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास ।
गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास ॥” (उत्तरकाण्ड, दो. १०३ क) रवि बाबू ने अपने विचारों में यह व्यक्त किया है कि पूर्ण सत्ता या असीम सत्ता के प्रति विश्वास सुसुप्त रहता है तो द्रव्य या भौतिक सुखों की ओर विश्वास होता है। उनके होने या पाने या रखने में विश्वास होता है । परिणाम संघर्ष और विनाश होता है । अन्त में चिता की राख हाथ लगती है। महाकवि तुलसी ने इस असीम के प्रति अपने प्रगाढ़ विश्वास को इस प्रकार व्यक्त किया है :
"कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम ।
तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम ॥” (उत्तरकाण्ड, दो. १३० ख) आचार्य विद्यासागर के तन के भीतर के 'मृदु-मुस्काते सन्त' का कथ्य और सत्य है :
"दूसरी बात यह है कि/बन्धन-रूप तन,/मन और वचन का आमूल मिट जाना ही/मोक्ष है।/इसी की शुद्ध-दशा में
अविनश्वर सुख होता है।" (पृ. ४८६) काजी नजरुल इस्लाम ने ऐसा ही अटूट विश्वास व्यक्त किया है :
"ध्वंस देखे भय केनो तोर ? प्रलय नूतन सृजन वेदन ? आसछे नवीन-जीवन-हारा असुन्दरे करते छेदन !
भेंगे आबार गढ़ते जाने से चिर-सुन्दर तोरा सब जय ध्वनि करो!
तोरा सब जय ध्वनि करो!!" 'मूकमाटी के भीतर के कवि ने शैली-चातुर्य से यह बताया है कि सन्त्रासवादी विप्लवी आन्दोलन नूतनता का