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178 :: मूकमाटी-मीमांसा
पुन: एक बार दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि सारी कथा प्रतीकात्मक है । हर वस्तु का एक अपना कथ्य है, श्रेय है और उपयोग भी । कभी कवि के रूप में आचार्य और कभी आचार्य के रूप में कवि मुखर होते हैं और अपनी बात को अभिव्यक्त करते हैं। जगह-जगह नीतिगत सम्बोधन, धर्म-अध्यात्म और दर्शन की अभिव्यक्तियों के साथ प्रकट होते हैं और अपने शब्द-विन्यासों से पाठक को चकित और अभिभूत करते हैं। सच कहें तो आचार्य के कवि में कवि नागार्जुन का अक्खड़पना, कवि त्रिलोचन का पैनापन, कवि जगदीश गुप्त की सादगी और राष्ट्रकवि दिनकर की तेजस्विता एक साथ समाहित है।
परन्तु आचार्यश्री के प्रति पूर्ण विनय भाव के साथ यहाँ यह कहना भी मुझे आवश्यक प्रतीत होता है कि साहित्यिकों और काव्य के मर्म तक पहुँचने वाले विद्वानों के अतिरिक्त साधारण पठन-पाठन में रुचि रखने वाला एक बड़ा जन-समुदाय आचार्यश्री की इस अनूठी कृति की भावभूमि को प्राप्त करने में अपने को असफल पाएगा, इसकी गूढ़ रहस्यमय प्रस्तुति के कारण।
यही बात अनुभव करके मैंने 'मूकमाटी' की कथा वस्तु को इतने विस्तार के साथ एक अनुशीलन के रूप में यहाँ प्रस्तुत किया है ताकि जन-साधारण इस महान् कृति का उसके सही परिप्रेक्ष्य में रसास्वादन कर सके । हो सकता है कई विद्वान् मेरे इस कथन से असहमत हों परन्तु उनसे मेरा अनुरोध है कि इस विषय में वे तनिक गहराई से सोचें।
___ एक बात और, आचार्यश्री का कवि, शब्दों को कठपुतलियों की तरह नचाता है, उन्हें तरह-तरह की नई भावभंगिमाएँ देता है, पाठकों को चमत्कृत करता है, विलोम रूप से नए-नए अर्थ निकाल कर । चमत्कृत करने की यह कला विरले ही कवि पा सकते हैं परन्तु यदि यह कला निरन्तर बार-बार प्रयुक्त न की जाए तो शायद उन शब्दचमत्कारों की चमक बढ़ जाएगी।
___आचार्य कवि श्री विद्यासागर अपनी कई अनुपम काव्य-कृतियाँ जिज्ञासुजनों और साहित्य प्रेमियों को अब तक प्रदान कर चुके हैं। स्वाभाविक ही यह भावना मन में उठती है कि क्या वे कुछ अनुपम जैन पुराकथाओं को अपने काव्य का उपादान नहीं बनाएँगे? यदि ऐसा हुआ तो यह निश्चित है आचार्यश्री का कवि आम साहित्य प्रेमियों के अतिरिक्त उनके चरणों में भक्ति रखने वाले असंख्य जैन धर्मानुयायियों को कई परम आह्लादकारी कृतियों से उपकृत करेगा।
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पात्रकी गति कोदेखकर---... अभ्यागतका स्वागत प्रारम्भ हुमा: