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मूकमाटी-मीमांसा :: 31
यह भी सत्य है कि/शब्दों के पौधों पर/सुगन्ध मकरन्द-भरे बोध के फूल कभी महकते नहीं,/फिर !/संवेद्य-स्वाद्य फलों के दल दोलायित कहाँ और कब होंगे? ...बोध का फूल जब/ढलता-बदलता, जिसमें
वह पक्व फल ही तो/शोध कहलाता है।" (पृ. १०६-१०७) शिल्पी गीली माटी को रौंदता है। इसी प्रसंग में कवि आस्था, निष्ठा, प्रतिष्ठा और संस्था की व्याख्या करता है तथा यह स्पष्ट करता है कि पुरुष का चेतन पर, चेतन का मन पर, मन का करण-गण पर, करण-गण का तन पर शासन हो पर तन सदैव शासित ही रहे । इसी सर्ग में विचारक कवि विभिन्न रसों की व्याख्या करता है, कुम्भ पर चित्रित ९ तथा ९९ अंकों की विशिष्टताएँ दर्शाता है तथा ६३ का वास्तविक और ३६ का विपरीत भाव बताता है । सिंह और श्वान की प्रकृति की चर्चा करता हुआ वह कहता है :
"श्वान सभ्यता-संस्कृति की/इसीलिए निन्दा होती है कि/वह अपनी जाति को देख कर/धरती खोदता, गुर्राता है। सिंह अपनी जाति में मिलकर जीता है,
राजा की वृत्ति ऐसी ही होती है ।/होनी भी चाहिए।" (पृ. १७१) कछुवा और खरगोश की दौड़ की चर्चा भी कवि करता है । 'ही' तथा 'भी' के अन्तर को स्पष्ट करते हुए कवि का कथन है :
“हम ही सब कुछ हैं/यूँ कहता है 'ही' सदा, तुम तो तुच्छ, कुछ नहीं हो !/और,/'भी' का कहना है कि हम भी हैं तुम भी हो/सब कुछ !.../'ही' पश्चिमी-सभ्यता है
'भी' है भारतीय संस्कृति, भाग्य-विधाता।" (पृ. १७२-१७३) इस प्रसंग में सन्त कवि राम-रावण के उदाहरण को देता हुआ लिखता है :
__"रावण था 'ही' का उपासक/राम के भीतर 'भी' बैठा था।"(पृ. १७३) निर्मित कुम्भ अब अग्नि में पकाए जाने के लिए तैयार है। तृतीय खण्ड-पुण्य का पालन : पाप-प्रक्षालन
इस खण्ड में माटी की विकास-कथा के माध्यम से पुण्य कर्म के सम्पादन से उत्पन्न उपलब्धि का चित्रण है। कवि धरती एवं सागर की विशिष्टताएँ दर्शाता है। धरा का ध्येय है धैर्य धारण करना (पृ.७, १९०)। उधर, “सागर में परोपकारिणी बुद्धि का अभाव है" (पृ. १९९) । आगे चलकर कवि नारी, महिला, अबला, कुमारी, स्त्री, दुहिता, मातृ, अंगना आदि शब्दों की व्याख्या करता है। कुम्भकार की अनुपस्थिति में उसके प्रांगण में मुक्ता की वर्षा होती है। लोग आश्चर्य में डूब जाते हैं। राजा तक बात पहुँचती है । राजा अपने कर्मचारियों को लेकर कुम्भकार के प्रांगण में पहुँचता है । मुक्ता राशि को बोरियों में भरा जाने लगता है। तभी आकाश से गर्जना होती है कि यह अनर्थ है । मुक्ताओं को छूने वालों के हाथों में मानों बिच्छू के डंक-से चुभने लगते हैं। राजा को लगता है कि वह किसी मन्त्र शक्ति द्वारा कीलित कर दिया गया है। तभी कुम्भकार आता है । वह ईश्वर से प्रार्थना करता है कि राजा कर्मचारियों सहित