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96 :: मूकमाटी-मीमांसा
इस अनौचित्यपूर्ण विधा के ढाँचे में तत्त्वमीमांसा और धर्मदेशना को प्रतिपाद्य बनाया गया है जो प्राय: अभिधात्मक । अतः प्रस्तुत कृति प्रधानतया एक शास्त्र है । वर्णविपर्यय, वर्णव्यत्यय ( शब्दभंग) एवं स्वकल्पित निरुक्तियों के द्वारा विचित्र अर्थ प्रतिपादित किए जाने से इसमें प्रहेलिकात्मकता भी है जिसे काव्य नहीं कहा जा सकता। भाषा काफ़ी हद तक अस्वाभाविक एवं कृत्रिम है । इससे भावसम्प्रेषण में बाधा उत्पन्न हुई है । अनुप्रासातिरेक ने भी काव्यत्व को हानि पहुँचाई है ।
फिर भी कृति में काव्य के अनेक सुन्दर उदाहरण हैं जो विभिन्न काव्यगुणों से मण्डित हैं । वे अपनी रमणीयता और प्रभावोत्पादकता के कारण मर्म को छूते हैं और मन को आह्लादित करते हैं । इतने मात्र से कृति मूल्यवान् हो गई है।
'मूकमाटी' : सरस शैली में लिखित दार्शनिक महाकाव्य
डॉ. रमानाथ त्रिपाठी
'मूकमाटी' एक ऐसा दार्शनिक महाकाव्य है जो सरस शैली में लिखा गया है । रचयिता आचार्य विद्यासागर में सर्जन की क्षमता है। उन्होंने माटी जैसी अकिंचन वस्तु को भव्यता प्रदान की है। उन्होंने युगानुरूप शैली में अपना कथ्य प्रस्तुत किया है । कठिनाई यह है कि यह युग महाकाव्य का नहीं है, अब इसका स्थान उपन्यास ने ले लिया है । इसके अतिरिक्त माटी, कुमुदनी, चाँद-तारे, सुगन्ध आदि जैसे पात्रों के आधार पर लिखित लगभग ५०० पृष्ठों के इस महाग्रन्थ को पढ़ने का साहस क्या पाठक में है ? तथापि, यदि कोई इसे पढ़ लेगा तो उसे आध्यात्मिक दृष्टि अवश्य मिलेगी । एक सन्त-कवि से ऐसे ही महाकाव्य की अपेक्षा की जा सकती है । निःसन्देह यह अपने ढंग का अनुपम ग्रन्थ
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पृष्ठ १०ऊ और सुनो !अब से कब तक ?
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