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58 :: मूकमाटी-मीमांसा
(१४) कला : " 'क' यानी आत्मा-सुख है/'ला' यानी लाना-देता है
कोई भी कला हो/कला मात्र से जीवन में
सुख-शान्ति-सम्पन्नता आती है।" (पृ.३९६) (१५) साहित्य : "हित से जो युक्त-समन्वित होता है/वह सहित माना है/और
सहित का भाव ही/साहित्य बाना है,/अर्थ यह हुआ कि जिस के अवलोकन से/सुख का समुद्भव-सम्पादन हो सही साहित्य वही है/अन्यथा,/सुरभि से विरहित पुष्प-सम
सुख का राहित्य है वह/सार-शून्य शब्द-झुण्ड !" (पृ. १११) (ख) विलोम अक्षर-विन्यास एवं शब्द (१) याद : दया : “पर की दया करने से/स्व की याद आती है और
स्व की याद ही/स्व-दया है/विलोम-रूप से भी
यही अर्थ निकलता है/याद "द "या।" (पृ. ३८) (२) राही : हीरा : “संयम की राह चलो/राही बनना ही तो/हीरा बनना है,
स्वयं राही शब्द ही/विलोम-रूप से कह रहा है-/राही ही "रा।" (पृ. ५७) (३) राख : खरा : "खरा शब्द भी स्वयं/विलोम-रूप से कह रहा है
राख बने बिना/खरा-दर्शन कहाँ ?/रा"ख"ख"रा।" (पृ. ५७) (४) लाभ : भला : _ “लाभ शब्द ही स्वयं/विलोम-रूप से कह रहा है
ला"भ""ला।" (पृ. ८७) (५) नदी : दीन: "नील नीर की झील/नाली - नदियाँ ये/अनन्त सलिला भी
अन्तःसलिला हो/अन्त-सलिला हुई हैं/इन का विलोम परिणमन हुआ है यानी,/न"दीदी' 'न ।/जल से विहीन हो
दीनता का अनुभव करती है नदी।" (पृ. १७८) (६) नाली : लीना : "ना ली लीना
लीना हुई जा रही है धरती में/लज्जा के कारण।" (पृ. १७८) (७) तामस : समता : "विश्व का तामस आ भरा आय/कोई चिन्ता नहीं,
किन्तु विलोम भाव से/यानी/ता "म"स"स"म"ता"।" (पृ. २८४) (८) रसना : नासर : "र"स"ना, ना"स' "र/यानी वसन्त के पास सर नहीं था।" (पृ. १८१) (९) धरती : तीरध: "धरती शब्द का भी भाव/विलोम रूप से यही निकलता है
घ"र"ती"ती"र"ध/यानी,/जो तीर को धारण करती है
या शरणागत को/तीर पर धरती है/वही धरती कहलाती है।" (पृ. ४५२) (१०) धरणी : नीरध : "स्वयं धरणी शब्द ही/विलोम-रूप से कह रहा है कि
घ"र"णी"नी"र"ध/नीर को धारण करे "सो"धरणी नीर का पालन करे "सो"धरणी !" (पृ. ४५३) .