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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ इसमें मुख्यतः संशोधन थ्रोम्बोलिटिक थेरापी पर हुआ है, जिसमें आर.टी.पी.ओ. नामक औषधि पक्षाघात होने के सिर्फ १ से ३ घंटे में हाथ या पैर की शिराओं में दिया जाता है, जिसे इन्ट्रावीनस थ्रोम्बोलिसिस कहते हैं । यह पद्धति प्रमाण में सरल है जिसमें अधिक उपकरण या विशिष्ट अनुभव की आवश्यकता नहीं हैं । उससे विरुद्ध इन्ट्राआर्टीरीयल पद्धति में केरोटीड या वर्टिब्रल धमनी में आर.टी.पी.ओ., यूरोकाइनेझ या प्रोयूरोकाइनेझ औषधि डायरेक्ट थ्रोम्बोसिस की जगह पर पक्षाघात होने के १ से ६ घंटे में (कभी-कभी २४ घंटे तक) दिया जाता है। यह पद्धति जटिल है, उसमें अनुभवी टीम और आधुनिक उपकरणों की आवश्यकता है । ऐसे अन्य कई औषधियाँ का संशोधन चल रहा है। उसके लिये विशिष्ट उपकरण (सी. टी. स्केन, ओन्जियोग्राफी सुविधा) से सुसज्ज अस्पताल होना चाहिए । इस प्रकार का इलाज महँगा है (वर्तमान में करीबन ६० से ९० हजार खर्च हो सकता है) और ४ से ७ प्रतिशत मरीजों में दुष्प्रभाव के रूप में ब्रेइन हेमरेज होता है । लेकिन मृत्युदर बढ़ता नहीं है और समग्रतया सोचने के बाद आज के वैज्ञानिक प्रमाणों को ध्यान में रखे तो यही सबसे श्रेष्ठ उपचार है । विदेशों में पक्षाघात के चिह्नों के बारे में जनजागृति अति उत्तम है, जिससे अधिकतर मरीज १ से २ घंटे में अस्पताल में दाखिल हो जाते है । वहाँ ईन्स्युरन्स प्रथा अति प्रचलित है जिससे यू.एस.ए. तथा यूरोप में इस प्रकार की उपचार पद्धति बहुत जल्द सर्वव्यापक हो रही है । उम्मीद रखते है कि हमारे देश में भी इस रोग प्रति जनजागृति बढ़े और लोग ईन्स्युरन्स प्रथा के बारे में अपनी सोच हकारात्मक करें तो अधिक लाभ होगा।
इन्ट्राआर्टियल थोम्बोलिसिस : इस पद्धति में पैर या हाथ की नलिका में से मस्तिष्क की नलिका-केरोटीड या वर्टिब्रल आर्टरी मेंकेथेटर तहत गाईडवायर पहुंचाया जाता है । इसके पश्चात डिजीटल सबस्ट्रेकशन एन्जियोग्राफी (DSA) द्वारा कौनसी नलिका में थ्रोम्बोसिस है या स्टीनोसिस (अवरोध) है, वह संशोधित किया जाता है । यदि वहां थ्रोम्बोसिस है तो डायरेक्ट संबंधित नलिका में (आर्टरी में) औषधि का
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