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25- अस्पताल में भर्ती किए हुए मरीज़ संबंधित जरूरी सूचनाएं ।
(५) जब प्रवाही देना हो तब सबसे पहले सिरिंज द्वारा पेट में से ट्यूब द्वारा प्रवाही वापस खींच कर चौकसाई कर लेनी चाहिए । अगर प्रवाही ५० CC से अधिक निकले तो उस समय फीडिंग नहीं दी जा सकती है। एक घंटे के बाद फिर से उसी तरह चौकसाई करने के बाद ही फीडिंग देना चाहिए। वापस खींचा हुआ प्रवाही रक्त या कोफी रंग का हो तो तुरंत ही डॉक्टर को बताना चाहिए ।
(६) कोई भी प्रवाही देने के बाद ट्यूब में १०-१५ ml जितना पानी डालकर उसे बिलकुल साफ करें ।
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(७) ट्यूब हर पंद्रह दिन में बदलना जरूरी है ।
(८) किसी कारण ट्यूब की पोझिशन बदल जाये या ट्यूब थोडी बाहर आ जाए तो उसे फिर से न डालते हुए ट्यूब बदलकर दूसरी डालनी चाहिए ।
(९) मरीज़ लंबे समय तक बेहोश या अर्धजाग्रत रहें तो नाक द्वारा ट्यूब फीडिंग देने से कुछ खतरे बढ़ते है । मुख्यतः छाती में न्यूमोनिया होता है, जिसे एस्पिरेशन न्यूमोनिया कहते है । बेहोश मरीज़ की मृत्यु होने के महत्वपूर्ण पांच कारणों में इस प्रकार का न्यूमोनिया मुख्य है, जिसे रोकने के लिए नाक की ट्यूब निकाल कर गेस्ट्रोस्टोमी ट्यूब से फीडिंग देना चाहिए । यह प्रक्रिया में पेट की त्वचा पर टनल बनाकर विशेष प्रकार की लम्बे समय (महीनों तक) चले ऐसी ट्यूब रखी जाती है । सामान्यतः १ से २ हफ्ते से विशेष समय तक मरीज़ बेहोश रहे तो इस प्रकार की गेस्ट्रोस्टोमी टयूब रखकर खतरे का निवारण करके जिंदगी बचाई जा सकती है ।
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