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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ ज्यादा मात्रा में असरयुक्त मरीज़ो में प्लाझमाफेरेसिस नामक उपचार किया जाता है। जिसमें मरीज़ का रक्त शुद्ध करके पुनः उसे शरीर में चढ़ाया जाता है। यह क्रिया से स्नायु की ओर जाने वाली तरंगो के प्रसारण में क्षति उत्पन्न करने वाले एसिटाईलकोलिन प्रतिद्रव्य (एन्टबोडिज) तथा अन्य पदार्थ दूर होते है। वास्तव में दर्द की किसी भी अवस्था में यह उपचार पद्धति से मरीज़ को फायदा होता ही है। न्यूरोलीजस्ट तय करते हैं, कौन से मरीज में कब करना । रोग की गंभीर स्थिति में जब कोई दवाई असर न करे तब तो यह उपचार अकसीर है । कभी कभी मरीज़ मायस्थेनिया क्राईसिस (कटोकटीयुक्त स्थिति)में आ जाता है । और रोग तीसरी, चौथी या अन्तिम अवस्था में आ जाए तब यह उपचार अर्थात, प्लाझमाफेरेसिस द्वारा मरीज़ की जिंदगी बचाई जा सकती है। कुछ मरीजो में प्लाझमाफेरेसिस एक से ज्यादाबार भी करने की जरूरत पड़ती है ।
ऐसा ही अत्यंत सही लेकिन महँगा उपचार इम्यूनोग्लोब्यूलिन के इन्जेक्शन का है, जिसमें स्वस्थ मनुष्यों के रक्त में से अथवा सिन्थेटिक तरह से एकत्रित किया गया रोगप्रतिकारक द्रव्य, जिसे इम्यूनोग्लोब्यूलिन कहते है, वह मरीज़ को विपुल मात्रा में नस द्वारा दिया जाता हैं । सामान्यतः ४०० मि.ग्रा./कि.ग्राम. प्रतिदिन करीबन तीन से पांच दिन यह दवाई प्रयोग की जाती है। उसका अंदाजित खर्च दो लाख तक हो सकता है। इस प्रकार के उपचार द्वारा भी रोग को शीघ्र नियंत्रण में ला कर जिंदगी बचाई जा सकती है। यह उपचार भी बार बार किया जा सकता है। सर्जरी :
मायस्थेनिया रोग में सर्जरी दो हेतुसर की जाती है । १. अगर आगे बताये मुजब थायमोमा नामकी गांठ हो तो ।
२. गांठ न भी हो, पर व्यक्ति की उम्र-४५ से कम हो तो । इस सर्जरी को थायमेक्टमी कहते है और उसके लंबे अरसे के परिणाम काफी अच्छे पाए गए है । इसके बाद दवाई क्रमशः बंद भी हो सकती है।
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