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9- कंपवात (Parkinsonism)
८० प्रतिशत जितने कोष नष्ट हो जाते हैं तब पार्किन्सोनिझम के लक्षण
दिखाई देते हैं ।
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वैसे तो पार्किन्सोनीझम रोग के निदान के लिए कोई विशिष्ट जाँच की आवश्यकता नहीं है; फिर भी जब कभी निदान में शंका हो या पार्किन्सन प्लस सिन्ड्रोम की शक्यता हो (जिसके बारे में हम बादमें देखेंगे) तो एम. आर. आई. या स्पेक्ट या फंक्शनल एम. आर. आई करवाना चाहिए ।
इन कोषों को नष्ट होने से बचाने के लिए कोई चिकित्सा या दवाई नहीं है । इस कारण इस रोग को जड़ से नहीं निकाला जा सकता है । लेकिन नियमित दवाई, उपचार करने से इसके अधिकांश लक्षणों पर नियंत्रण अवश्य ही किया जा सकता है । आधुनिक चिकित्सा पद्धति तथा व्यायाम और योग द्वारा इस रोग में राहत मिल सकती है ।
उपचार :
चिकित्साकिय उपचार हेतु की दवाई में मुख्यतः लिवोडोपा, डोपामीन एगोनिस्ट (रोपीनीरोल) और एन्टिकोलीनजिक दवाएं (पेसिटेन) इत्यादि दवाई प्रयोग में ली जाती है। इसमें से लिवोडोपा मुख्य दवाई है जो ब्रेईन में डोपामीन नामक तत्त्व सीधा ही प्रवेश करवा देती है । जिसकी कमी से यह रोग होता है । जितने प्रमाण में लक्षण होते हैं, उसके अनुसार दवाई की मात्रा डॉक्टर तय करके यह दवा देते है । आवश्यकता अनुसार निष्णात डॉक्टर का मार्गदर्शन जरूरी होता है, क्योंकि इस दवाई का दुष्प्रभाव भी अधिक होता है । यह दवा अलग अलग प्रमाण में, भिन्नभिन्न संयोजन में, और टेब्लेट, प्रवाही व पम्प की सहाय से भी मरीज को दी जा सकती है ।
अधिकतर निष्णात चिकित्सक इस दवाई की जगह पर रोग की प्रारंभिक अवस्था में पेसिटेन, एमेन्टिडीन, ब्रोमोक्रिप्टिन, प्रेमीपेक्षोल
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