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11 - निद्रा-विकार और उपचार (Sleep Disorders) (i) दिनमें अतिनिद्रा :
• १५ से ३५ वर्ष की उम्र में अतिनिद्रा का विकार शुरू होता
यह रोग मुख्यतः हायपोक्रे टिन नामक तत्त्व की खामी से होता है। निद्रा का समय १५ मिनिट से अधिक नहि होता और
आवाज देने से या स्पर्श करने से मरीज जाग जाता है । • दिन में ऐसा कई बार होता है । (ii) केटाप्लेक्सी (Cataplexy) :
कुछ सेंकन्ड के लिए भावुकता से या भारी श्रम करने से या कभी बिना कारण सभान अवस्था होने के बावजूद स्नायुओं का शिथिल होना। गिर जाना । कई बार ऐसी परिस्थिति घंटो तक रहती है। कई बार स्नायु आंशिक शिथिल हो जाते है उदा. जबड़े
का लटक जाना। (iii) निद्रा आने या जाग जाने पर विचित्र भ्रम होना । (iv) कुछ मरीजों को निद्रा में अल्पजीवी पक्षाघात भी हो सकता है।
पोलीसोम्नोग्राफी-मल्टीपल स्लीप लेटन्सी टेस्ट द्वारा योग्य निदान हो सकता है। उपचार : (१) १५ से २० मिनिट के लिए दिन में २ से ३ बार नियत समय
पर सो जाए। (२) मस्तिष्क को उत्तेजित करने वाली दवाई - मिथाईल फेनीडेट,
एम्फेटेमाईन, मोडाफोनील जैसी दवाई का योग्य प्रयोग (३) ट्राइसायक्लीक एन्टिडीप्रेसन्ट दवाईयाँ, एस.एस.आर.आई.
और एस.एन.आर.आई दवाईयाँ ।
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