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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ • दवाई :
मस्तिष्क के टी. बी. की दवाई में मुख्यतः स्ट्रेप्टोमाइसिन (SM ) के इन्जेकशन, आइसोनायाझाइड़ (INH ), रिफाम्पीसीन (RF ), पायरेझीनामाइड (Pz ) तथा इथाम्ब्युटोल ( EMB ) है, जिसे प्रायमरी (प्रथम चरण की) दवाई कहते है । कुछ हठीले केस में स्पारफ्लोकसासिन या सिप्रोफ्लोक्सासिन; अथवा केनामाइसिन इन्जेकशन, इथिओनेमाईड या साइक्लोसेरिन नामक दवाई भी उपयोग में ली जाती है, जिसे सेकन्डरी (द्वितिय चरण की) दवाई कहते है। लेकिन इन सब दवाई का कोई न कोई दुष्प्रभाव संभवित है, इसलिए मरीज के लक्षण के उपरांत लेबोरेटरी जाँच से बारबार चौकसाई की जाती है । जैसे कि INH, RF या Pz से यकृत (लीवर) में कभीकभी सूजन आ सकती है और पीलिए की असर भी दिखाई देती है। इसलिए डॉक्टर SGPT/ SGOT आदि ब्लडरिपोर्ट समयसमय पर करवाते रहते हैं, और अगर रिपोर्ट ठीक न आये तो, संबंधित दवाई कुछ समय बंद करनी पड़ती है। कभी उल्टी होना, भूख कम हो जाना, RF लिया हो तो पेशाब का रंग लाल जैसा होना - यह सभी लगभग सभी मरीजों में दिखते हैं, परंतु इस वजह से दवा बंद नहीं करनी पड़ती । ४ से ६ सप्ताह में मरीज की तबियत में सुधार होने लगता है।
मस्तिष्क में सूजन हो या CSF जाँच में प्रोटीन विशेष हो तो मुख्यतः स्टीरोईड दवाई ४ से ६ सप्ताह के लिए दी जाती है और यदि मस्तिष्क में बड़ी गांठ हो तो शायद बड़ा ऑपरेशन करना पडता है या नई स्टीरिओटेक्टिक बायोप्सी के छोटे ऑपरेशन द्वारा बायोप्सी के साथ छोटी गांठ हो तो वह भी निकाली जा सकती है । सामान्यतः गांठों के लिए ऑपरेशन की शायद ही जरूरत पड़ती है। दवाई के माध्यम से ही गांठ पिघलने लगती है। जिसके लिए २ से ३ महिने के बाद सी.टी. स्कैन या एम.आर.आई. जाँच करवा कर उसमें हो रहे सुधार पर नजर रखनी चाहिए । कमर के पानी की जाँच (CSF) शायद ही बारबार करनी पडती है। परंतु हठीले दर्दो में कभीकभी कमर के पानी द्वारा दवाई दी जाती है, जिसे इन्द्राथिकल स्ट से दवा दी गई ऐसा कहा जाता है ।
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