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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ पेशाब में तकलीफ, शारीरिक अशक्ति, या तो दस्त या तो पसीना बहुत होता है या कम हो जाता है, हृदय की धड़कन
में चढाव-उतार होता है। ४. छाती या पेट के ऊपर की कुछ नस में अधिक जलन होती है।
डायाबिटीस को सम्पूर्णतः नियंत्रित रखने से और इन्स्युलीन का उपयोग करने से राहत होती है। न्यूरोपथी के चिह्न को नियंत्रित रखने की योग्य दवाई है, जिससे कुछ हद तक लाभ होता है।
(६) लेप्रसी : अपने देश में लेप्रसी (कुष्ठरोग) प्रचलित है (हालाँकि अब वह आंशिक रूप से कम जरूर हुआ है)। मायकोबेक्टीरियम लेप्री नामक जंतु से यह होता है और मुख्यतः संवेदना वाहक चेताओं (सेन्सरी नर्क्स) को वह नुकसान करते है। इससे उँगलियों की संवेदना चली जाती है। चोट का एहसास नहीं होता और हाथ-पैर की उँगलियाँ धीरेधीरे पिघल जाती है और बीमारी शरीर के अन्य अंग में फैलती है । इसके मुख्य दो प्रकार है : (१) लेप्रोमेटस लेप्रसी (२) ट्युबरक्युलोइड लेप्रसी, जिसमें त्वचा को प्रमाण में कम नुकसान होता है, लेकिन न्यूरोलोजिकल नुकसान अधिक है ।
डेप्सोन, रिफाम्पीसीन, क्लोफाझिमीन जैसी दवाई और योग्य ड्रेसिंग द्वारा यह बीमारी अधिकांशतः काबू में लाई जा सकती है। परंतु उपचार डेढ़ या दो वर्ष से लेकर दस वर्ष तक चलता है। इस बीमारी को रोकनेवाले टीके भी अब उपलब्ध है।
(७) केन्सर : केन्सर शरीर के अन्य भाग में हो तो भी नसों को असर होता है, जिसे पेरानीओप्लास्टिक सिन्डोम कहा जाता है । फेफडें के केन्सर में ऐसी न्यूरोपथी खास देखने को मिलती है । पेराप्रोटीनीमिआ या मायलोमा के नाम से जानेवाले एक प्रकार के ब्लडकेन्सर में भी न्यूरोपथी अधिक देखने को मिलती है। इसलिए न्यूरोपथी के तमाम केसों में सघन जाँच की अति आवश्यकता है, वह स्पष्ट है।
कुछ केसों में ओटोनोमिक न्यूरोपथी हो सकती है जैसे कि डायाबिटीस में ब्लडप्रेशर का अधिकमात्रा में चढ़ाव-उतार, नाड़ी की धड़कन में चढ़ावउतार, पसीना, मल-मूत्र की तकलीफ आदि अनेक प्रकार की अनैच्छिक
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