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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ होने के बाद ३ से ७ वर्ष में बिस्तर वश हो जाता है, वज़न कम होता जाता है। बीमारी के इस प्रकार को "एमायोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस " ( ए. एल. एस.) कहते है। यहाँ करोड़रज्जु के एन्टिरिअर होर्न सेल्स और उसे कंट्रोल करती उपर से आनेवाली चेताओं (पिरामिडल फाइबर्स) को असर होता है । इसलिए न्यूरोलोजी की भाषा में उसके अपर मोटर न्यूरोन तथा लोअर मोटर न्यूरोन इन दोनों पर असर (जाँच द्वारा ) दिखती है । (३) "प्रोग्रेसिव मस्क्युलर एट्रोफी" मोटर न्यूरोन डिसीज़ का एक ऐसा प्रकार है जिसमें पिरामिडल फाईबर्स को असर नहीं होता, इस लिए अपर मोटर न्यूरोन प्रकार के न्यूरोलोजिकल लक्षण (जैसे कि ब्रिस्क जर्क, एक्षटेन्सर प्लान्टर इत्यादि) नहीं दिखते हैं। प्रमाण में यह धीरे से फैलने वाला और धीरे से बढ़ने वाला रोग है ।
(४) बल्बर मोटर न्यूरोन डिसीज़ में जैसे कि आगे निर्देशित किया है, मस्तिष्क की चेता के जनिक कोषों पर असर होती है, जिसके कारण आहार निगलना, बोलना इत्यादि महत्त्वपूर्ण क्रियाओं पर प्रभाव पड़ता है। श्वास में तकलीफ होती है । इसमें मृत्यु शीघ्र ही अर्थात् १ से ३ वर्ष में हो जाती है ।
(4) स्यूडोबल्बर पाल्सी, वह ए. एल. एस. के साथ संबंधित मस्तिष्क चेताओं का रोग है और उसमें भी आहार निगलना, बोलना इत्यादि क्रियाओं पर प्रभाव होता है, साथ ही अनैच्छिक वजह से मात्रा से ज्यादा हंसना, रोना ऐसे विचित्र लक्षण प्रारंभ होते है ।
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